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________________ २१० महापुराण [ ५७. २३. ६. खवह पुराइउ कम्मु गयालसु तहु सुउ रयणाउहु रइलालसु। माणइ सोक्खु ण तिप्पह भोएं णं मयरहरू तरंगिणितोएं । जायवेउ णं तरुपमारे अइरारिउ वित्थरइ क्यिारे । घत्ता-अण्णहि दिणि पवरूजाणरि गिरिसरिखेत्तविहूसियउ ॥ __ सिरिवजदंतमुणिणा जणहु तिहयणमाणु पयासियल |२३॥ विजयतुममें कुंभीसा णि कल्लाणाकारि जलहरसरू । सं णिसुणिवि मुणिभासिर कंखइ दिण्णु वि मासगासु ण वि भक्खर । मंतिविग्ज आउछह राण मह बेरमु कि विदाणन । ताव तेचि अवलोइस जाइवि लक्खिर तणु गुणदोस पैलोइवि । जंगलकालु णिबद्ध ढोइर पयघियकर पिडु संजोइ । मो कवलि र करिणा कर दत वजदंतु पुच्छि उ महिवंत । मात्यात वंदिवि मुणिपुंगमु मासु ण खाइ कई तंबेरमु । कहइ महारिसि जियवम्मीसक पत्थु भरहि छत्तरि परेसा । पायभइ णामें णं वम्महुँ सइदेवीवइ गावइ सयमुहूं । १० पत्ता-पौड़करु पुत्त प्रसिद्ध जइ मंसिवि जाणि चित्तम ।। कमला इव कमला तासु पिय तगुरुहु ताहं विचित्तमइ ॥२४॥ बारिसे अभ्रान्त पुत्र भी पिता पास दीक्षित हो गया। आलस्यसे रहित पूर्वाजित कर्मको वह नष्ट करता है, उसका रतिको लालसा रखनेवाला पुत्र रत्नायुध खूब सुख मानता है, भोगसे तृप्त नहीं होता, जैसे समुद्र नदियों के जलसे तृप्त नहीं होता, जैसे वृक्षसमूहसे आग अत्यन्त उद्दीप्त होकर फैल जाती है। ___ चना- एक दूसरे दिन प्रवर उद्यानगृहमें श्री वज्रदन्त मुनिने गिरि, नदी और क्षेत्रसे विभूषित त्रिभुवन-विभाग लोगोंको बताया ॥२३॥ २४ राजाका विजयमेघ नामका जो कल्याणकारी और मेवके समान स्वरवाला गजराज था, यह सुनकर मुनि के कथनको चाहने लगता है और दिये हुए मांसके कौरको नहीं खाता । राजा मन्त्रियों और वैद्योंसे पूछता है कि मेरा हाथी दुबला क्यों हो गया है। तब उन लोगोंने जाकर देखा और गुणदाप देखकर उसको परीक्षा की। उसे बंधा हुआ मांसका कौर नहीं दिया गया, दूध, धो और भातका आहार दिया गया । ऐई देते ठुए हाथीने उसे खा लिया। राजाने सिरसे प्रणाम करते हुए मुनिश्रेष्ठ वनदन्त से पूछा कि यह हाथी मांस क्यों नहीं खाता 1 कामदेवको जीतनेवाले महामुनि कहते हैं, इस भरतक्षेत्र के छत्रपुर में प्रीतिभद्र नामका राजा था, जो मानो कामदेव था। (वह बैसा ही था) जैसे इन्द्राणीका पति इन्द्र । पत्ता-जगमें उसका प्रीतिकर नामका प्रसिद्ध पुत्र था और मन्त्री भो चित्रमति था। उसकी पत्नी कमला कमला ( लक्ष्मी ) के समान थी। उन दोनोंका पुत्र विचित्रमति था ॥२४॥ ३, A मयहरु । ४ AP अवह दिगि । २४. १. A णवकहलाण । २. पलोयदि P पला इदि । ३. A पीइभदः । पाइभद्द ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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