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महापुराण
[५७. १५. १०घता-मा णिहणहि पडिकरि गिरितरु वि जीव णिहालिदि पर धिवहि ॥
गय भक्खहि शिवडियदुमदलई परकलुसि पाणिउ पियहि ॥१५।।
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मारतत्र वि अण्णु मा मारहिं अप्पउ संसारह उत्तारहि । ता कुभत्यलणवियमुर्णिदें थिस व पालि तेण गई। बंभचेक दिढ़ णिशलु घरियर्ड जिणपायारविंदु संभरिया। खविउ कलेवर कायकिलेस परियटुंत कालविसेसे। केसरितीरिणित.गड जइय खुसउ दुइमि कमि तझ्यहुँ । णरि चमरिजम्मंतरमुकें पिसुण अवरभवंतरदु के। कुंमारोहणु करिवि सदप्पे भविश्वर गयवइ कुकुडसा । मुन हुउ उसमेण सोक्खापहि सहसारइ सुरभवणि रविप्पहि । सिरिहरु देउ काई वणिज्जइ एह जाणिवि धम्मु जि किज्जइ । हुउ धम्मिलु वाणरु रोसुक्कडु मारि तेण रणे सो कुछडु। णियपावें पंकापहि पत्ता
अण्णु वि एव जि जाइ पमतच । घत्ता-जणु जिणवरक्यणु ण पत्तियइ खाइ मासु मारिवि पसु ।
संतावइ साहु समंजस वि णिवाइ गरइ सकम्मवसु ॥१६||
घता-तुम प्रतिगजको मत मारो, गिरिता और जीवको भी देखकर पैर रखो। हे गज, गिरे हुए द्रुमदलोंको खा लो और दूसरोंके द्वारा कलुषित पानी पिओ ॥१५||
दूसरेके मारने पर भी तुम मत मारो, संसारसे अपना उद्धार करो। तब जिसने अपने कुम्भस्थलसे मुनीन्द्रको नमस्कार किया है, ऐसे उस गजने स्थिर व्रतका पालन किया। उसने दृढ़ ब्रह्मचर्यको धारण कर लिया और जिनवरके चरणकमलोंका स्मरण किया। कायक्लेशसे अपने शरोरको क्षीण कर डाला। समयविशेष आनेपर जब वह केशरी नदोके तटपर गया तो दुर्दम कीचड़में फंस गया 1 चमरीमृग जन्मान्तरसे मुज, दूसरे जन्ममें पहुंचे हुए दुष्ट कुक्कुट सर्पने कुम्भपर चढ़कर गजपतिको काट खाया। मरकर वह उपशम भावसे, जो सुखोंको सीमा है, रविके समान जिसकी प्रभा है ऐसे सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। उस श्रीधर देवका क्या वर्णन किया जाये, यह जानकर हमें धर्म करना चाहिए। धमिल वानर हुआ और उसने युद्ध में क्रोधसे उत्कट उस सर्पको मार डाला । अपने पापसे वह पंकप्रभा नरक में पहुँचा । दूसरा प्रमत्त जीव भी इसो प्रकार जाता है।
धत्ता-लोग जिनवरके बचनका विश्वास नहीं करते, पशु मारकर मांस खाते हैं। योग्य साधुको सताते हैं और अपने कर्म के वश नरकमें जाते हैं ॥१६||
१६. १. AP तो। २. AP व । ३. AP विरु । ४. तडु गउ । ५. APणकर । ६. A दमसमेण |
Aदि। 1. A मारिज रणि तेण सो; P"मारित तेण रणि सो।