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________________ ३०३ -५७. १५.९] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पुण्णचंदु जो पोयणसामिल भदबाहुगुरुणा उवसामि। जो तुह अब तुज्जु गुरु जापस पहुं पिसी जि सुरभुजियपायउ । ताड महारत कंतु तुहारउ जायर याणि वारणु दुवारउ । कूरतिरियजम्में संमोहित इणणकामु सो मई संबोहिउ । धत्ता-ओसरु गयवर मयर्रयममर मा दूसह दुक्किड करहि ॥ किं णिहणहि गंदणु अप्पणवं सीइयंदु गड संभरहि ।।१४।। १५ ता जाईभैर जायउ कुंजरू दुद्धरु गिरिवरगेहयपिंजरु। शायइ इहु रिसि तणुरुड मेरत हर्ष जायस वणि करि विवरेर । जो चिरु मुंजंतउ रस णव णव सो एहि भक्खमि वरुपाव। जो चिरु सेर्वत वरणारिउ तहु एवहिं दुकलं गणियारठ। जो चिरु चंदणकुंकुमलिसउ सो एहि कमि पंगुत्तठ । जो चिरु सुहं सोवंवउ तूलिहि सो विहिं हर्ड लोलमि धूलिहि । जो चिक देतउ दाणु सुदीणहं सो एवहिं महुयरसंताणहं। जो चिर जाणंतत्र छग्गुण्ण तें किह पुत्त णिहणु पडिषण्णर्ड | उजर देव एय सिरियत्तणु ता मई भणि मुणेप्पिणु नहु मणु । वारुणिको तुम पूर्णचन्द्र जानोगी। हे मां, होते हुए मोहको आप क्षमा कीजिए । पूर्णचन्द्र जो पोवनपुरका स्वामी था, उसे भद्रबाहु गुरुने शान्त कर दिया है। तुम्हारे जो पिता तुम्हारे गुरु है देवोंके द्वारा पूज्यपाद वह मेरे भी गुरु हैं। मेरे पिता तुम्हारे स्वामी हैं। वह वनमें दुरि वारण हुए हैं। कर तिर्यंच जन्मसे मोहित मारने की कामनावाले उसे मैंने सम्बोधित किया है पत्ता-जिसके मदमें भ्रमररत हैं, ऐसे हे गजवर, दूर हटो, तुम असह्य पाप मत करो। तुम अपने पुत्रको क्यों मारते हो? क्या तुम सिंहचन्द्रको याद नहीं करते ? ||१४|| १५ तब गिरिवरको गेरुसे पीले कुंजरको जाति स्मरण हो गया कि यह मेरा पुत्र मुनि होकर ध्यान करता है, मैं वनमें विपरीत गज हुआ हूँ, जो पहले मैं नव-नवका भोग करता था, यह में अब इस समय वृक्षके पत्ते खा रहा हूँ। जो पहले उत्तम नारियोंका सेवन करता था,उसके पास इस समय हुपिनी पहुंची है । जो पहले चन्दन और कुंकुमसे लिप्त होता था, वह इस समय में कीचड़ में फंसा हुआ हूँ। जो पहले रुईपर सुखसे सोता था, वह मैं इस समय धूल में लोटता हूँ। जो पहले अत्यन्त दीनोंको दान देता था, वह मैं इस समय मधुकर सन्तानको दान (मदजल) देता है। जो में पहले षड्गुण राजनीति जानता था, हे पुत्र, उसने इस निर्धनस्वको कैसे स्वीकार कर लिया : हे देव. इस स्त्रीत्वमें आग लगे। तब मैंने उसके मनको जानकर कहा ७. AP पुज्जियसुरपायउ । ८. A मयरसभमर । १५. १. A पाईसक; न जाएभरूKजाईस but corrects it to हाइंभह । २. P amits this line. ३. A P भुंजंतउ । ४. A तुमहि । ५.A कमहि । ६. A सो एमहि लोलिवितणु P सो एमहि लोलेमि तणु । ५. A तं हि णिहणु पुत्त पडि; P तें किह णिहण पुत्त पाई। ८. A बज्मा व एक Pाउ एक देव ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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