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________________ ३०० महापुराण ११ णं जमपासणं जमदूयउ । घणणिहि कलस व लक्ष्यणियतणु । कोइलभसलकसणु मरुभोयणु । दीहरु कालु जावई गच्छ तित्तणु मिलहु दिष्णवं । धम्मणाममुणिवरपयजुयतलि । भद्दमित्तु जिणवर क्विंकित | गणि सुमितविधि खद्ध । मयत्रइसेणहु जायउ णंदणु । पुण्यंत अणुउपयासि । णं पुण्णम रैविससिहि पसाहिय । दविणागार नियंतु णरेसरु | मंतिवर बद्धवहरु हुए सप्पु घरि ॥ सिविक भीणिण णउलीयर करेषि करि ||११|| ५ भीमु अगंधणकुलि संभूयउ सिसुखसिसरिसेवि समदाढाणणु कज्जलैक हलतं बिरलोयणु फुफरंतु दुम्मुहु अहि अच्छ तारापण रिद्धिपरिक्षण्णउं असणवणंतरि कंतारायलि सुणिवि धम्मु संसार संकित णियजणणिइ छुहियइ चवलद्ध उ भरिषि महाबलु पडिबलमहणु १० सी चंदु पहिलारच भासित रामयत्त बिहिं पुत्तहिं राहिय soft दिणि कुलकमल दिशेस द धत्ता - जो सबघोसु चिरु [ ५७.११.१ ११ गंधण कुल में पैदा हुआ भीम वह मानो यमका पाश या दूत था । उसका मुख शिशुचन्द्रमाके समान और विषम दाढ़ोंवाला था। धन और निधिकलशोंसे अपने शरीरको लपेटे हुए था। उसके नेत्र कज्जलके समान काले और लाल-लाल थे। वह कोयल- भ्रमर के समान श्याम था । हवा उसका भोजन था । वह दुर्मुख सांप फूत्कार करता हुआ वहाँ रहता है । उसका लम्बा समय वहाँ बीत जाता है । राजाके द्वारा ऋद्धिसे परिपूर्ण मन्त्रिपद धर्मिल ब्राह्मणको दिया गया। असना नामक वन में विमल कान्तार पर्वतपर धर्म नामक मुनिवरके चरणकमलोंके तलमें धर्म सुनकर भद्रमित्र संसार से शंकित होकर जिनवरको दीक्षा में दीक्षित हो गया । वह अपनो भूखी मां सुमित्रा वाषिन द्वारा पा लिया गया और वह उसे खा गयी। वह मरकर सिहसेनका शत्रुसेनाका मर्दन करनेवाला महाबली पुत्र हुआ । उसमें सिंहचन्द्र पहला कहा गया और दूसरा पूर्णचन्द्र उसका अनुज प्रकाशित हुआ। मां रामदत्ता अपने दोनों पुत्रोंसे शोभित थी, मानो पूर्णिमा सूर्य और चन्द्रमासे प्रसाषित थी। किसी दूसरे दिन कुलकमलका सूर्य अपना कोशालय देख रहा था । पत्ता - जो सत्यघोष प्राचीन मन्त्रीवर वैर बांधकर घरमें साँप हुआ था, भोषण, उसने रूठकर और हाथ में नकुलीकरण कर उसे काट खाया ॥ ११ ॥ ११. १. P सरिक्ष विसदाढा । २. A कज्जलकण्हिरतंबिरी; P कज्जलकज्जलतंबिर । ३. A " दग्धिणिखाउ । ४. P सीचं । ५, AP पुण्णचं | ६. AP ससिरविहि । ७. APणियत्तु । ८. Pतं सिवि । ९ APकिल ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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