SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -५७. १३.४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित ३०१ मुउ सल्लाइवणि जायच करिवर असणियोसु णामें दीहरकरु । गयर ससामिमरणि कुज्झते मंतसारु सयलु वि बुझते। गारुडदंडपण गारडिएं फणि आवाहिय मच्छरचैडिएं । भणिर काई महूं वयणु णियच्छहु दीर्दू घरेप्पिणु णिलयहु गच्छतु । ता पइसरिवि जैलणि अहि णिगय अकयदोस जे ते सयल वि गय । पञ्चारियड इयरु मतीसें। राज महार भक्खिवि रोसें। एवाहि एम काई अच्छिजह जिम सिहि खवइ जिम विसु छिज्जेइ । ता चिंता कुंभीणसु णियमणि अम्हइं जाया गोत्ति अगंधणि । अग्गिल्लिर विसु केम गिलिजइ कुलसामत्यु केम मइलिज्जइ । धत्ता-मरणि वि संपण्णइ गहयगरु कुलछलु माणु ण मेल्लिय ॥ जालावलिजलियइ विसहरिण अप्प हुयवहि धल्लियउ ॥१२॥ १३ अट्टझाणमेरट्टे सो मुल कालवर्णतार हुयड चमरीमउ । खंति हिरण्णवई वणि बंदिदि दुकिड पुणु पुणु णिदिवि गरहिवि । रामयत्त पियदुक्खें भगदी पंचमहश्वयंचरियहि लग्गी। सिंहचंदु चिरु रच करेप्पिणु पुरु धरित्ति णियभायदु देपिणु । १० वह मरकर सल्लकीवन में करिवर हुआ, बशनिघोष नामका लम्बी सूंडवाला । अपने स्वामोके मरनेसे ऋद्ध होकर और समस्त मन्त्र रहस्य जानते हए मारुडदण्ड नामक गारुडीने मत्सरसे भरकर सोका आह्वान किया ( बुलाया) और कहा, "मेरा मुख क्या देखते हो, दीप धारण कर घरसे चले जाओ।" तब आगमें प्रवेश करते हुए सभी सांप चले गये, जिन्होंने दोष नहीं किया था वे सभी गये । तब मन्त्रीशने कहा, "तुमने क्रोधसे हमारे राजाको काट खाया । अब इस समय तुम्हें क्यों यहां रहना चाहिए, जिस तरह भाग क्षय करती है उसी प्रकार विष भी क्षीण करता है।" इसपर वह सांप अपने मन में सोचता है कि हम अगन्धन फुलमें उत्पन्न हुए हैं । उगले हुए विषको हम किस प्रकार खा सकते हैं? अपने कुल-सामध्यको क्यों, किस प्रकार मलिन करें? पत्ता-मृत्युको प्राप्त होनेपर भी उसने महान् कुलगर्व और मान नहीं छोड़ा। सांपने अपने आपको ज्वालावलीसे जलती हुई आगमें डाल दिया ।।१२।। मार्तध्यानसे मरकर वह साप कालवनमें चमरीमृग पैदा हुमा । प्रियके विरहसे भग्न होकर रामदत्ता वनमें हिरण्यवती नामको मायिकाको वन्दना कर और पापको बार-बार निन्दा और गीं कर पांच महाव्रतोंकी चर्या में लग गयी। सिंहचन्द्र भी चिरकाल तक राज्य कर और फिर १२. १. A गाडियह । २. A बडिपा । ३. A विन्दु धरैषिणः । P दीन फरेपिणु। ४. P लिणि । ५. A चिजह । ६. AP गिलियज । ७. AP ते मरणे वि होतए गत्यपरु कुलुच्छलु । १३. १. A जमाणमरणेण में सो मुझ । २. AP गहिवि गिदिषि । ३. AP सोहचंदु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy