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________________ -५७. १०. १४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-तं णिउणमईहि समप्पियर्ड धाइहि हियवर्ड हरिसियलं ।। अहिणाणु महामंतिहिं तणउ भंडायारिहि दरिसियउं ॥५॥ पप्फुल्लियसुवत्तसयवत्तइ चिंधु पदसिवि बुत्त धुसह । अच्छइ गुरु राउलि अवलोयहि भदमित्तमाणिकाई ढोयहि । तो कोसाहिवेण सामुग्गड अप्पिन धाइहिं वत्थुसमुग्गट 1 गया लेपि सनि देतात अच्छइ सणिर्वणिवाणी जेतहि । जूयपवंचु पहुहि बजरियर वसुविसेमु कुडिले अवहरियड । ताराएं पायावलिजठियई अपणई रयणई तहि तोतढियई। पबिहारें आहूयल वणिवरु लाइ णियमाणिकई पसरहि करु । मणि रिदै वणिउ णिरिक्खा णियधणु किंण को वि ओलक्खा । लइयज तेत्थु तेण पियमणिगणु जिड़ मणिगणु तिह णरणाहु मणु । दिपण पुरमहल्लसे द्वित्तणु पाइ को ण सुइत कित्तणु । मंतिणिरिकु दुछु अवमाणहु कंसथालि खाषाविस छाड्छ । सीसि तीस खरटकरचाहिं ताडित मल्लहिं कुंचियकायहि । पत्ता-कसपहरपरंपरसुढियतणु चरवेयणवड्डियजर ।। मुट रायहु उप्परि कुवियमणु हुड वसुवासह विसेटर ॥१०॥ पत्ता-वे चीजें उसने अपनी निपुणमति धायको सौंप दी। वह मनमें हषित हुई । महामन्त्रीको इन पहचानोंको में भण्डारीको दिखाऊंगी ।।९|| खिले हुए मुखकमलवाली उस धूर्ताने पहचान बनाकर कहा कि "गुरु राजकुलमें हैं, (यह) देखो और भदमित्रके माणिक्य दे दो।" तब कोषके अध्यक्षने रत्नोंसे परिपूर्ण पिटारा उसे दे दिया । वह उसे लेकर एक क्षणमें वहाँ गयो जहां उसके राजाकी रानी थी। उसने जुएका प्रपंच राजाको बसाया और कुटिलतासे अपहृत किया गया धन भी। तब राजाने किरणावलिसे बिजड़ित और दूसरे रस्न उसमें मिला दिये। प्रतिहारने वणिकवर को बुलाया। "को अपने रत्न ले लो।" राजाने कहा। वणिक् उन्हें देखने लगा। अपने धनको कौन नहीं पहचानता। उसने वहां अपने मणिगण ले लिये। जिस प्रकार उसने अपना मणिगण ले लिया, उसी प्रकार उसने राजाका मन भी जीत लिया। उसने उसे नगरके महाधेष्ठीका पद दिया। पवित्रतासे संसार में कोन नहीं कोसि पाता? चोर मन्त्री अपमानको प्राप्त हुआ। काँसेको थाली में उसे गोबर खिलाया गया। संकुचित शरीर मल्लोंके तीन टक्करके आघातोंसे तीस बार सिरपर उसे ताड़ित किया गया । पत्ता-कोड़ोंके आघातको परम्परासे शून्यशरीर तथा अत्यधिक वेदनासे जिसे ज्वर बढ़ रहा है ऐसा वह सत्यघोष मन्त्री राजाके प्रति कुपित मन होकर भाण्डागारमें सौप हुआ ॥१०॥ ६. A महिवशहिमयउं । ७. P भहापारिहे। १०. १. P हो । २. A सापगत; P सामनाउ | ३. P लेपिण संस्खणि । ४, P मणिवइराणी । ५. P adds dि after देण। ६. A पायद को ण सइत्तें; P पावह कि ण सुइत्तें। ७. A सीस तीस बरकर; P सीसि तीस खरडकर । ८. A वणवेयण'; Pषणवेयण । ९. A विसहरु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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