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________________ २९४ महापुराण जेण वएण मोक्खु पाविना ते संसार केंच मग्गिजइ। मोहें मोहित लोन ण याणा काणणि कार्याणतिय वीणा । सवाल किं मोत्ति बुझाइ मिच्छाइद्विहि दिट्ठि ण सुन्नइ । आहिंडतेसरहपंचाणणि तावेकहि दिणि भीसणकाणणि । णिज्जियराएं वन्जियकाएं संजयंतु थिट पडिमाजोएं। पत्ता-मुणिमारस धीरउ दुइरिसु दूसहु गुणसणिहियसरु । णियभामइ सामहरामियउ णं रइराम कुसुमसरु ॥३॥ णायलि विजदादु विजाहरु विहरइ असिवर वसुणंदयकर । सुरहरू रिसिहि उपरि ण पयट्टइ। दुजणमणु वर्ग जाव विसदृ । ताव तेण अवलोइउं माहियलु दिटु मुणिवरु मेरु व णिषलु । सुमरिवि पुज्यवइस मुइ ढोइल विजासामत्थेणुचाइन। आणि तुंगसाहिसंधायद भारहवरिसंपुष्वदिसिभाया । हरिव करिव चामीयरवह कुसुमव वि चंडवा।। एयर मिलियट जहिं तहिं पेलिउ पंचमहासरिसंगमि घल्लिर । देसु असेसु तेण संचालिस अच्छद पत्थु एक्कु मलमलित। जग्गड णिग्घिणु वसणोवायउ तुम्हई रक्खसु भक्खहुं आयत । मरकर पाताल लोको विषधरराज होता है । जिस व्रतसे मोक्ष पाया जा सकता है, उससे संसार क्यों मांगा जाता है ? इस बातको मोहसे मोहित जन नहीं जानता। जंगलमें भील गुंजाकी प्रार्थना करता है, क्या वह मोतीको समझता है? मिथ्यादष्टिके लिए दुष्टि नहीं दिखाई देती। जिसमें सरभ और सिंह भ्रमण करते हैं, ऐसे भयंकर जंगल में एक दिन, जिसमें रागको जीत लिया गया है और शरीरका त्याग कर दिया गया है ऐसे प्रतिमायोगमें संजयन्त मुनि स्थित थे। पत्ता-मुनिको मारनेवाला धीर, दुदर्शनीय, असत्य डोरोपर तीर चढ़ाये हुए, अपनी पत्नी श्यामासे इस प्रकार रमण करता हुवा मानो काम रतिके साथ रमण कर रहा हो ।।३।। जिसके हाथमें वसुनन्दक नामकी श्रेष्ठ तलवार है, ऐसा विद्युदंष्ट्र विद्याधर आकाशतलमें बिहार कर रहा था। उसका देव-विमान मुनिके ऊपर नहीं आ सका। दुर्जनके मनकी तरह जबतक उनका विमान विषटित नहीं हमा, तबतक उसने धरतोतलको देखा, उसने मेरुके समान, मुनिवरको अपल देखा । अपने पूर्व बेरको याद कर उसने विद्याको सामय॑से उसे उठा लिया तथा बाहोंपर धारण कर लिया और उसे. जो ऊँचे-ऊंचे वृक्षोंसे आच्छादित है, भारतवर्ष के ऐसे पूर्वदिशा भागमें जहां हरिवती, करीवतो, चामीकरवती, कुसुमवतो और चण्डवेगा नदियां मिलती हैं, वहीं फेंक दिया और इस प्रकार पांच महानदियोंके संगमपर डाल दिया तथा अशेष देशमें यह धात फैला दी कि यहाँ एक मलसे मैला निर्दय दुःखजनक नंगा राक्षस तुम लोगोंको खानेके लिए २. A कायाणगिय । ३. A मिछाहिहिहि । ४. P बाहिति सरह । ४. १.A विज्दाछु । २. AP जाय ण । ३. A परिसिं पुरुच । ४. A कुसुमबई व पाण; Pकुसुमवार विघानियागइ । ५. A जहि एयर मिलियन वहि पेल्लिन । ६. AP एक्कु एत्थु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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