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________________ महाकवि पुष्पदन्त विरचित पंचाससरहेहि मायंगसीहेहि। फणिपविखरापहि मेहेहि. वारहिं । पहरंति ते थे वि ता च करि लेवि। महणा पजंपियां किं दक्षिणु महुँ हिय। पत्ता--कि धम्मै गयभउम्में जो पहरणु णायेक्खइ॥ मई कुद्ध जयसिरिलुद्धइ एमहिं को पई रक्खइ दा दुवई-ता दामोदरेण रिट दुछित धम्मपहाणुओरिणा ॥ एण रहंगरण दारेवडं तुहुँ मई कित्तिकारिणा । वं मुणिवि भुय धुणिधि । मणहरिहि सुंदरहि। विसयण कयवयण-। विणुएण तणुएण । खयकरणु रहधरणु । रणि मुकु खणि दुछ। णहि चलिखें जैलजलिउं। समिया करि था। अहिणबहु केसवहु। तं धरिवि छलु भरिवि। दीहरेण मच्छरेण । विफुरिवि हुंकरिवि । माहवेण घणरण। अरिभणिउं। तणु गणि चिरकालीन वैरसे लिप्त है, और जिन्होंने धनुर्वेदमें प्रवृत्ति प्राप्त की है, ऐसे गरुडेश और मधुराजने तीर फेंके । सिंह-सरभ तीरों, गन-सिंह तीरों, नाग- तोरों और मेघ वायु तीरोंसे वे दोनों प्रहार करते हैं। इतने में चक्र हाथमें लेकर मधु बोला-तुमने मेरे धनका अपहरण क्यों किया ? धत्ता-जो अस्त्रको नहीं देखता, उस धर्म और गजयोद्धा कमसे क्या ? यशरूपी श्रीके लोभी मेरे कुछ होनेपर इस समय कौन तुम्हारी रक्षा करता है ? ||८|| तब दामोदरने दुश्मनको फटकारा कि धर्मपथका अनुकरण करनेवाले और कोतिकारी इस चक्रसे मैं तुम्हें मारूगा ? यह सुनकर, अपनी भुजाएं ठोककर, मनहरी–सुन्दरीके पुत्र, विद्वज्जनों द्वारा शब्दोंसे संस्तुत मधुने विनाश करनेवाला चक्र छोड़ा। यह एक क्षणमें पहुँचा। आकाशमें चला चमकता हुआ। शान्त सूर्यकी तरह अभिनव केशवके हाथमें स्थित हो गया। उसे धारण कर, साहस कर, भारो मत्सरके साथ विस्फुरित होकर, हुंकार कर, मेषके समान शब्दवाले माधव ९. १. दामोयरेण । २. P°पहाणुरायणा । ३. A जले जालित ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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