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________________ महाकवि पुष्पवन्त विरचित ४ सो ताई बिहिं मि दिग्गयणिणार सुब जायच मयरद्वय समाणु तिसयल महिणिज्जिय तेण कब तहि कालि गहीर समुदु महवि तासु णामें सुद पिढमइ जणिय पढमपुत्तु बीइ लव रिद्धिज ते बेणि वि धम्मसंयंभुणाम ते बेणि वि रामसुसामदेह ते वे वि सिद्धविनास मत्थ ते व विणिग्गय मलविलेव दुबई -- इह भरहम्मि रयणपुरि णरवइ णामें समर केसरी ॥ fotoपावसंणिझुण घरिणी तस्स सुंदरी ॥ लक्खल कियदिव्वकाउ | माणं वग्गमि भाणु मिडिधारिणि घरदासि जेंव । दारावइपुरवरि राउ रुदु । अण्क्क पुहइ पुद्दइ व्व भद्द | अहमदु देव सो मंदिमित्तु । संजय गंदणु सो सुकेठ । ते बेणि विससिरविसरिसधाम । ते बेणि षि गरुणिबद्धणेह । ते वे वि दिव्वपहरणविद्दत्थ । सीरासुरः । ते धत्ता - गुणवं वहिं तेहि सुपुत्तहिं दोहिं मि उचालियन कुलु || पतहिं यणि वहिं णं ससिसूरहिं महियलु || ४ || –५६ ५. २ ] * दुबई - बेणि वि ते महंत बलवंत महाजस घोयदसदिसा ॥ विमदगरुडवाहिणिव वे वि अतिसाहसा || ४ २८५ ५ १० १५ इस भारत के रत्नपुर नगर में समरकेशरी नामका राजा हुआ। उसको वीणाके सुन्दर आलापके समान सुन्दर ध्वनिवाली सुन्दरो गृहिणी थी। वह (बलि) उन दोनोंका दिग्गजके समान निनादवाला लाखों लक्षणोंसे अंकित दिव्य शरीर, कामदेवके समान सुन्दर मधू नामका पुत्र हुआ मानो सूर्य उगा हो । तीन खण्ड धरतीको उसने इस प्रकार जीत लिया जैसे वह निषिघट धारण करनेवाली गृहदासी हो । उसो समय द्वारावती में गाम्भीर्य में समुद्र के समान रुद्र राजा हुआ । उसकी सुभद्रा नामकी महादेवी थी, एक और पृथ्वी देवी थी जो पृथ्वीकी तरह कल्याणी थी । वहाँ पहली से वह तदिमित्र अहमिन्द्र देव पहला पुत्र हुआ, दूसरीका वह सुकेतु ऋद्धिका हेतु लान्तवदेवसे च्युत होकर पुत्र हुआ। वे दोनों क्रमश: धर्म और स्वयम्भू नामबाले थे। वे दोनों हो चन्द्रमा और सूर्यके समान शरोरवाले थे। वे दोनों हो राम और श्यामके समान देहवाले थे । वे दोनों ही भारी स्नेहसे निबद्ध थे। वे दोनों ही सिद्धविद्या में समर्थ और दिव्यास्त्र प्रहारमें कुशल थे। वे दोनों ही मलविलेपसे विनिर्गत थे। वे दोनों ही बलभद्र और वासुदेव थे । पत्ता- उन दोनों गुणवान् सुपुत्रोंने कुलको उज्ज्वल कर दिया, मानो आकाशम जात हुए प्रभासे युक्त चन्द्र-सूर्यने धरतीतलको आलोकित कर दिया हो ॥४॥ ५ ये दोनों ही महान् बलवान् महायशस्वी और दसों दिशाओंको घोनेवाले थे। दोनों ही गज ४. १, AP | २. AP सुभ । ३ लंडविच । ४. AP पवईत हि ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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