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________________ महाकवि पुष्पवन्त विरचित धत्ता- रक्त पियवइणिव्भग्रहं पक्षरणेहि पहरं तरं ॥ -५४. १७.१२] तं आयउ सयलाई पस्थिवद्दं स ति घरंत घरंत ||१६|| १७ दुबई - देवासुरण रिंद फणिखे यरकिंणरदष्पहारयं ॥ मुकारि माणिक्षमऊविराइयारयं ॥ बार कर ि हिं तु सरणु कहिं के। अणुहि संपयगरुयारी । मंडखंड भिक्ख पावेपिणु । ति तुहुं पण रहूंगे हरिसि वासु होइथि गरुड विहि । अप्पर बार बारु किं वण्णहि । महं अग्गइ भडवाएं भजहि । भाणुबिंबु णं किरणहिं जेलि वरिवि तेण करि जंपिडं एह करहि र बल केरी तापडिस चब विह से प्पिगु जिह यह संतो से देसिड राहु होइन हथि पत्थरु होवि मेरु व मण्णहि रे गोबालबाल जड लाहि लगाइ घत्ता-लइ रक्खउ तेरव सीरहरु एहिं मारमि लग्गड || किं चुकइ काणणि केसरिहि दिट्टपथि गिब्बैंडिड मरे ॥१७॥ २६९ पत्ता - अपने स्वामीको निर्भय बनानेवाले रक्षकोंके अस्त्रोंसे प्रहार करते हुए और समस्त राजाओंके पकड़ते हुए भी वह चक्र आया ||१६|| १७ देव, असुर, नरेन्द्र, नाग, विद्याधर और किन्नरोंका दर्प हरण करनेवाला, विश्वको आलोकित करनेवाला, माणिक्य किरणोंसे शोभित आराओंवाला, किरणोंसे विजड़ित सूर्यनिम्बके समान वह चक्र वासुदेवके हाथके निकट आकर ठहर गया। उसने उसे हाथमें लेकर यह कहा कि "बताओ इस समय तुम्हारी पारण कौन है ? तुम बलभद्रकी आज्ञा मानो और अपनी भारी सम्पत्तिका भोग करो।" तब प्रतिशत्रु तारक हँसकर कहता है, "अपूपखण्ड मोखमें पाकर देशी आदमी जैसे सन्तोष से नाच उठता है, वैसे हो तुम इस चक्रसे प्रसन्न हो रहे हो, गधे होकर तुम सिंहसे लड़ते हो । कौआ होकर गरुड़से युद्ध करते हो, पत्थर होकर अपनेको मेरा समझते हो, अपने आपको रोको-रोको, स्वयंका क्या वर्णन करते हो ? रे-रे ग्वाल बच्चे, शर्म नहीं आती। मेरे आने सुभट हवा भन्न करना चाहता है । पत्ता- ले तू अपने बलभद्रको बचा, इस समय लड़ते हुए उसे मारता हूँ। क्या जंगलमें सिंहके दृष्टिपथ में आया हुआ भूग बच सकता है ?" ॥१७॥ १७. १. A फलियउ । २. A भिक्खु । २. P रहसि ४, AP हि । ५. AP विडिव । ६. AP गड ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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