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महापुराण
[५४.७.१
दुवई-बिणि वि सह वसंति विहरंति वि विलुलियफुसुमसेहरा ।।
विपिण वि परममित्त ते सुरवर सुररमणीमणोहरा ॥ एत्तहि चिन संसोरु भमेपिणु विज्ञसत्ति जिलिंगु लएप्पिणु । तेरहदिस चारित्तु घरेप्पिणु णिरसणधिहिमग्गेण मरेप्पिणु। मछरकारयलवालियचामत जायच दिबदेहु मप्पामरु । वह ताहं विहिं मि दिवि जाइयई संखसमाउसु संठिच तश्यहुँ । अंबुद्दीवि छुहेपंकियगोरु भरहि भोयवड्ढणु णामें पुरु । तहि सिरिमाण राणउ सिरिहर सिरिमइदेविसिहिणसंगयकरु । विझपुराहिड सग्गाहु आयउ एयह बिर्हि मि पुतु संजाय । जर्यामरिसोमंतिणिभत्तारउ जसससककिरणावलितारर । कोक्कि सो णियताएं तारन वसिकयसम्वदेसतार। तारयताराणाहे चित्तई ___ असिकरेण रितिमिरई जित्तई। पत्ता-मंडलियह मयमा प्पिय सिरि पाडिवि समसुत्ती॥
तिहिं खंडहिं मंडिय मेइणिय चप्पिवि दासि व भुत्ती ॥७॥
दुवई-अप्पण्डिहयपथावकंपाधियसयलदिसाविहायए ।।
सपवणतरणिवरुणवइसवणभयंकर तम्मि जायए ! तावेत्तहि बहसोक्खपवदृणि इह, भारहि दारावपट्टणि ।
जिनका कुसुम-शेखर ( कामदेव ) आन्दोलित है ऐसे वे दोनों साथ रहते हैं । वे दोनों ही परममित्र सुरस्त्रियोंके लिए सुन्दर हैं। यहाँ विन्ध्यशक्ति भी बहुत समय तक संसारमें भ्रमण कर और जिनदोक्षा धारण कर, तेरह प्रकारके चारित्र को पाल कर, अनशन विधिसे मरकर जिसपर अमराओं के हाथोंसे चमर ढोरे जा रहे हैं ऐसे दिव्य शरीरवाला कल्पामर हुआ । जब वे दोनों देव यहां थे, तभी समान संख्याको आयुवाला वह वहाँ रहा। जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें चूनेसे पुता है गोपुर जिसका ऐसा भोगवद्धन नामका नगर था। उसमें लक्ष्मीको माननेवाला श्रोधर नामका राणा था जिसके हाथ अपनी श्रीमती नामकी देवीके स्तनोंपर रहते थे। विध्यशक्ति राजा स्वर्गसे च्युत हो इन दोनोंका पुत्र हो गया। जयश्री सीमन्तिनी के स्वामी यशरूपी चन्द्रमाको किरणाबलासे स्वच्छ उसे पिताने तारक कहकर पुकारा। तारकरूपी चन्द्रमाके असिरूपी हाथसे आहत शत्रुरूपी अन्धकार जीत लिया गया।
- पत्ता--मद और माहात्म्यसे युक्त माण्डलोक राजाओंके सिरपर वन गिराकर तीन खण्डोंसे अलंकात धरतोको चांपकर वह दासी की तरह उसका भोग करने लगा ।।७।।
अपने अप्रतिहत प्रतापसे समस्त दिशा-विभागों को कंपानेवाले तथा परन सहित सूर्य, वरुण और वैश्रव के समान भयंकर उसके उत्तम हा चुरुनेपर, यहां भारतमें अनेक सुखों का प्रवर्तन
७. १. AP संसार । २, AP छुहपंक्य । ३. AP बिहं मि 1 ४. A सबसुत्ती ।