SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४. ९.४ ] महाकवि पुष्पवन्तविरचित खलखत्तियबलदपविणासणु । भे राहि बंभपयासणु । तासु सुहद्द सुहद्दणिसेणी । दस सयबरु अवरु वि सियदिणयरु । पाणइंदु जणिय माय । बीउ उववादेवि दढमुउ । केलास नीलमणिमहिहर । पढमजिणेसरवंस विसनु रिजछयग्गसिप्पीरहुया सणु मंदगमण वीणारव वाणी ४ सिfore ताइ दिनु संपयहरु आसि बाहु जो सो आय अणु से अचल दुविट्ठणाम ते सुंदर धवलच एक एकु अलिकालउ एक सिरिमाणणु सरधुङ एक चंदु णं एक दिवायरु -- घता ते बेण्णि विभायर भुषणरवि जोइवि रोसविमीसिउ ।। महाहहु जावि तारयहु बहु चरेहिं आहासिकं ॥ ८ ॥ ९ दुबई - सियकसणपक्ख इलिसिरिथेषु बेणि वि वळसाला ॥ दाराव इरिंदवत गिरिवरेधरणभुयबला || दो भि सिद्धई दिई चावई । बिज्जादेवि पेसणयरियर | इषसभहाभंगुरभावई दोहिं म य रयणविष्फुरियड एक्क सुसीलु एक्कु दुबीउ । एकु सुभीमु एक सोमाणणु । हरु एकु एक्क दामोयरु | २६१ ५ १० १५ करनेवाली द्वारावती नगरीमें, प्रथम जिनेश्वर आदिनाथके वंशका भूषण, दुष्ट क्षत्रियोंके बलदर्पका नाश करनेवाला, छह प्रकार शत्रुरूपी तिनकोंके लिए अग्नि, ब्रह्मको प्रकाशित करनेवाला ब्रह्म नामका राजा था । उसकी मंदगामिनी, वीणाक्रे शब्द के समान बोलनेवाली, कल्याणोंकी नर्शनी सुभद्रा नामकी देवी थी । स्वप्न में उसने सम्पत्तिको धारण करनेवाला सूर्य और चन्द्रमा देखा । उसका जो वायुरथ प्राणत इन्द्र था उसे इस मौने पुत्रके रूपमें जन्म दिया । सुषेण भी स्वर्गसे युत होकर, उपमा (उषा) देवीसे दूसरा दृढभुज पुत्र हुआ। अचल मोर द्विपृष्ठ नामक वे दोनों सुन्दर ऐसे आन पढ़ते थे मानो कैलास और नीलमणि पहाड़ हों। एक गोरा था और एक भ्रमरकी तरह काला था । एक सुशील था और एक खोटी लोलावाला था। एक भारी था और एक लक्ष्मीको मानने वाला था। एक भीम था और एक सुन्दर मुखवाला था। एक चन्द्रमा था और एक दिवाकर था। एक बलभद्र था और एक दामोदर था । धत्ता - विश्वरवि और क्रोषसे मिश्रित उन दोनों भाइयोंको देखकर घरोंने जाकर उस महीनाथ तारकसे कहा ॥८॥ " बलभद्र और नारायण दोनों मानो श्वेत और कृष्णपक्ष तथा धवल और श्याम हैं । द्वारावती-नरेन्द्रके वे श्रेष्ठपुत्र गिरिवरको धारण करनेमें समर्थ बाहुबलवाले हैं। उन दोनोंको ८. १. P भू । २. AP दिट्टु साह । ३ AP संपययरु । ४ A सुणसूणु । ५. AP बीउ वायादेवि । ६. K. दुस्खील but correctrs it to दुल्लीलज । १. १. P रिरिहर । २. "वरण I
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy