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________________ [५४. ६.८ महापुराण 'बलपबलसत्ति भजु विझसत्ति । रिउ भणि तेण रे रे णिहीण । दे देहि णारि मा गिलउ मारि । सहुँ परियण पई रणि खणेण । तं सुणधि सत्तु इयरेण वुत्तु । गुणिहियबाणि मई जीवमाणि । को रमइ तहणि कमि पैडिय हरणि । जो हरिहि हर सो झ त्ति मरइ । इय जपमाण बेणि बि समाण। विधति वीर पुलइयसरीर। फणिवइपमाण बाणेहिं बाण । णहि पडिखलंति उत्साहि पंडति । धय जिल्लुणंति सारहि हणंति । हय कप्परति पुणु चपरंति। हणु हणु भणंति अंगाई वर्णति । सहसा मिलंति विहडेवि जंति । पडिवलिवि एंति थिर गिरि व थंति । ता गयविलासु विशाहिवासु । घत्ता-संधाणु ण लक्खहुँ सकियउं चक्लसरावलि देतह ॥ __ गउ णासवि तासु सुसेणु रणि णं पम्मट्ठ अरहतहु ।।५।। किया है, जो वाहनों से अप्रमाण है, दिशामें दौड़ रहा है, जिसके ध्वजछत्र छिन्न हो चुके हैं, ऐसा अपना सैन्य देखकर शत्रुयोद्धाके लिए कृतान्त तथा बलसे प्रबल शक्तिवाला विन्ध्यशक्ति तुरन्त वोड़ा । उसने शत्रु सुषेणसे कहा, "रे नीच, नारी दे दे, तुझे परिजनोंके साथ एक क्षणमें कहीं मारि मस्सा ले।" यह सुनकर दूसरेने कहा, "जिसको डोरीपर बाण है, ऐसे मेरे जीवित रहते हए कौन उस रमणीका भोग कर सकता है, जो पेरोंपर पड़ी हुई हरिणीको सिंहसे छीनता है, वह शीघ्र ही मुत्युको प्राप्त होता है।" इस प्रकार कहते हुए वे दोनों ही समान ( योद्धा) पुलकित शरीर होकर एक दूसरेको बेधते हैं। नागराजके समान बाणोंसे बाण आकाशमें स्खलित होते हैं, छत्रोंसे छत्र गिर पड़ते हैं, ध्वज कट जाते हैं, सारथि मारे जाते हैं, अश्व काटे जाते हैं, पुनः आक्रमण किये जाते हैं, मारो-भारो कहते हैं, अंगोंको घायल करते हैं, सहसा मिलते हैं और विघटित होकर जाते है । मुड़कर बाते हैं, स्थिर गिरिके समान स्थिर होते हैं । गत विलास होकर घत्ता-सन्धानको लक्षित करने में समर्थ नहीं हो सका। चंचल तोरोंकी आवली देते हए उससे युद्ध में सुषेण उसी प्रकार नष्ट हो गया, जिस प्रकार अरहन्त देवसे कामदेव नष्ट हो जाता है।॥५॥ ४. AP बडिय । ५. P हरिणि । ६. AP पमाणु । रोसे जलंति । ९. A छति । ७. AP बाणु । ८. P adds after this:
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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