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________________ २५७ -५४. ५.७] महाकवि पुष्पचन्त विराजत दोडं वि साहणाई आल गई चालियचकई तोलियखमाई । खलियरहंगई मलियतुरंगई दलियधुरग्गई दूसियमगई। मोडियदंडई लुयधयसंडई खंडियमुंडई णधियरंबई । जूरियपतई चूरिय छत्तई दारियगनई जिग्गयरत्तई। लूरियताण यजंपाणई उड्डियप्राणई कय सिरदाणई। हुंकारंतई हकारंतई उरगयकोतई बललुलियंतई। मग्गणभिषण तिलु तिलु छिण्णई सेयवसिण्णई रसकिलिण्णई। विरसु चवंतई वम्मु छिवंताई संक मुयंतई संकुषितई। इस्थिणिसुंभई फाडियकुंभई जोहणिरंभई जयजसुलंभई । पत्ता-ता सरिवि सुसेणे सरिउबले सरहिं णिरंतर भिण्णउं। जमदूयह भूयहं भुक्खियह णाइ दिसाबलि दिण्ण ||४|| दुवई-ताव सुसेणमुकषाणावलि विडियणिविडायघडं ।। हरिसंचलणदलणणिदुरखुरफोडियधवलधयवई ॥ छवियकिवाणु गलियाहिमाणु । संवतकेसु जणजणियहासु। पत्तावमाणु दिसि धावमाणु । धयछत्तछण्णु पेच्छवि संसेणु । पडिभड़कयंतु धाइ तुरंतु। अनुरक्त मतवाले हाथियों के समान भिड़ गये । दोनोंको सेनाएं भिड़ गयों, चक्र चलाती हुई और खड्ग तोलती हुई । चक्र स्खलित हो गये, अश्व दलित होने लगे। धुराग्रभाग चूर-चूर होने लगे। मार्ग दूषित होने लगे । दण्ड मुड़ने लगे। श्वजसमूह कटने लगे। मुण्ड कटने लगे। षड़ नाचने लगे। वाहन पोड़ित हो उठे। छय चूर-चूर हो गये। शरीर विदीर्ण हो गये, रक्त बह निकला। बश्व और जंपाण प्राण (कवच) रहित हो गये। प्राण उड़ने लगे। सिरोंका दान किया जाने लगा। हुंकारते हुए, हंकारते हुए भाले उर में घुसने लगे, चंचल आते लुढ़कने लगीं। तीरोंसे छिन्न-भिन्न होकर तिल-तिल कटने लगा। पसीनेसे भीग गये, रक्तसे लिप्त हो गये । विरस बोलते हुए, कवच छेदते हुए, शंका छोड़ते हुए, अस्त्र ग्रहण करते हुए, हाथियोंको नष्ट करते हुए, कुम्भस्थलोंको फाड़ते हुए, योद्धाओंको रोकते हुए, जय और यशको पाते हुए। पत्ता-तब सुषेणने तोरोंसे शत्रुसेनाको लगातार छिन्न-भिन्न कर दिया, म्मनो उसने भूखे यमदूतों और भूतोंको दिशाबलि दो हो ।। ४ ॥ सबतक सुषेणफे द्वारा छोड़ो गयो बाणावलोसे सधन गजघटा विघटित हो गई। यश्वोंके संचालन और दलनके कारण कठोर खुरोंसे धवल ध्वजपट फाड़ दिये गये। जिसने तलवार छोर दी है, जिसका अभिमान खण्डित हो चुका है, केश बिखर चुके हैं, जिसने लोगोंमें हास्य उत्पन्न २.AP जोणिसुभई । ३. AP जयजसलेभई; P adds aftr this: किसिविर्यभर । ४. AP बल १. १.AP वलण । २. AP फालिय । ३. A ससेणु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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