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महापुराण
जं पई जाणिदं ति तं ण भवि । बसहु कुमारहु मंतसिक्ख । आसी सरतें तुरंतु । तो करइ पर मरणावया । ता ससुरएण उवएस दिष्णु । सत्तमदिणि कंपावित फणिदु । वरदाइणिउ हरिरामेहुं पणवंति ॥ रिउमेदूइ खणि आश्यव देहु नियम पभणंविउ ||२||
भोसीह तुहियरकंति लइ तो वि देव किज्जइ परिक्ख taraराई मणि संभरंतु जइ साहइ विज्जादेवयास विजासाइणविहिभेय भिष्णु fre झाणारूड हलि उबिंदु पत्ता - विज्जाजोइणि
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दुबई - गारुडविज पुज्जे संसाहिय हरिणा भुवणखोहिणी ॥ अवर महंत सत्संधूरणि पैवर वि णाम रोहिणी ॥
खभणी
चलणिभैणी ।
जयपचारिणी
तिमिरकारिणी । रिमोहणी ।
सहाही
दिकामिणी |
गामिणी विवरवासिणी जलणवरिसिणी
गावासिणी ।
धरणिदौरणी
बंधमोयणी कोंतला छन्दस दिसी
[ ५२.२.११
सलिलसोसणी ।
कुडिलमारणी ।
विविहरूविणी ।
लोहसंखला |
कालरक्खसी ।
भ्रान्ति नहीं। तब भी हे देव, लो, परीक्षा कर लीजिए कुमारके लिए मन्त्रशिक्षाका उपदेश दीलिए वह तुरन्त सात रात तक बैठकर बीजाक्षरोंका ध्यान करता हुआ यदि विद्यादेविय सिद्ध कर लेता है, तो वह दूसरोंके लिए मरणरूपी आपत्ति कर सकता है।" तब ससुरने विद्यासाधन की विधि रहस्य से परिपूर्ण उपदेश उसे दिया। बलभद्र और नारायण ध्यानमें लोन होकर बैठ गये। सातवें दिन नागराज कम्पायमान हो उठा ।
पत्ता- वर देनेवाली विद्यारूपी योगिनियाँ बलभद्र और नारायण ( विजय और त्रिपृष्ठ ) को प्रणाम करती हुई शत्रु के लिए यमदूतीकी तरह, 'आदेश दो' कहती हुई आयीं ॥२॥
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नारायणने संसारको क्षुब्ध करनेवाली पूज्य गारुड़ विद्या सिद्ध कर ली। एक और दूसरी महान् शत्रुको चूर करनेवाली रोहिणी नामको महान् विद्या सिद्ध कर ली । खड्गस्तम्भिनी, वननिशुमिनी, आकाशगामिनी, अन्धकारकारिणी, सिंहवाहिनी, बेरोमोहिनी, बेगगामिनी, दिव्यकामिनी विवरवासिनी, नागवासिनी, ज्वलनवर्षिणी, सलिलशोषिणी, भूमिविदारिणी, कुटिलमारिणी, बन्धमोचनी, विविधरूपिणी, मुक्तकुन्सला, लोहश्रृंखला, दसदिशा-आच्छादिनी,
९. AP सत्तरति । १० A हरियो । ११. Pो ।
३. १. A पुंज । २. A सयल महंत सत"; P सयलमहंतु सत्तु । ३ AP अवर वि । ४. AP बंमिणी । ५. AP सुभिणी ६, AP सोसिणी । ७. P दारिणी । ८AP विविकुंतला 1
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