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________________ २१३ -५२.२.१०] महाकवि पुष्पदन्त विरचित तइ जलइ अलणु जहणस्थि वारि जइ णस्थि संति तो पडइ मारि 1 भो आणइ मरणु पहाणवइरु "भो एस्थु ण णिजइ कालु सुइरु। पहु लहु दीसइ जॅजेवि सामु दा लिहसिवि साराह पर देशा ! घत्ता-सज्जणु उवसमइ खलु कि खमइ बोझतहुँ"सुइमिट्ठल । घिन हुयेवह मिलिउं जललवजलिङ बप्प किंण पई दिट्टा ॥१॥ १५ दुवई-मित्त तिविधि रुद्वि गिरिधीर वि एंति ण वइरिणो रणं ।। कि विसहति दंति हरिणाहि वखरकररुत्रियारणं ॥ जइयहं अहिवलयविलंबेमाण वणि अचाइय सिल इलसमीण। मई जाणिठं वइयहूं कैहि वि कालि देवहूं पेक्खंतहं भडवमालि। तोडेसइ यकंधरह सीसु रत्तच्छिवत्तु भूभंगभीसु । को हालाहलु जीहाई कलइ को करयलेण हरिकुलिखें दलइ। को गयणि जंतु अहिमया खलइ को णियबलेण धरणियलु तुलइ । को कालु कयंसहु माणु मलइ को जलणि णिहित्तु वि जाहिं जलइ । को फणिवाइफणमणिणियरु भइ को पद्धिय विज्जु सीसेण धरह। को भंडा सह महुं भायरेण तो जंपित मंति सायरेण । जलती है जहां पानी नहीं होता, जहाँ शान्ति नहीं होती तो वहाँ आपत्ति आती है, प्रधानका वैर मृत्युको लाता है। अरे, यहाँ बहुत समय नहीं बिताना चाहिए। हे प्रभु ! शीघ्र ही वह सामने दिखाई देगा।" (यह सुनकर) तब प्रथम राम (बलभद्र विजय) ने हँसकर कहा पत्ता-सज्जन शान्त होता है, कानोको मीठा लगनेवाला बोलनेपर भी क्या दुष्ट क्षमा करता है? हे सुभट, आपसे मिला हुआ (जलता हुआ) और जलकणोंसे उत्तप्त, मिला हुआ घी क्या तुमने नहीं देखा ? ||१|| १० है मित्र, त्रिपुष्ठके ऋत होनेपर भी पहाड़की तरह धीर वेरी रणमें नहीं आते । सिंहके द्वारा तीने नखोंसे विदारणका क्या गज उपहास करते हैं ? जब सर्पमण्डलसे अवलम्बित पृथ्वी जैसी शिलाको उसने उठाया था, तभी मैंने जान लिया था कि देवोंके देखते हुए, योद्धाओंके कोलाहट के बोच किसी भी समय वह अश्वग्रोवके लाल-लाल आंखोंवाले तथा भ्रूभंगसे भयंकर सिरको तोड़ेगा? विषको जोमसे कौन छूता है ? करतलसे इन्द्रके वनको कौन चूर-चूर कर सकता है। थाकाशामें जाते हुए सूर्यको कोन स्खलित कर सकता है ? कोन अपनी शक्तिसे पृथ्वोको तोल सकता है? कौन काल और यमके मानको मैला कर सकता है। कोन आगमें रखे जानेपर भी, नहीं जलता ? नागराजके फनके मणिसमूहका अपहरण कौन कर सकता है ? गिरती हुई बिजलीको कौन धारण कर सकता है ? मेरे भाईके साथ कौन युद्ध कर सकता है ? हब सागर मन्त्री बोला- "हे बलभद्र और चन्द्रमाके समान कान्तिवाले, आपने जैसा जो जाना है, उसमें जरा भी ११. AP घु। १२. A पढम् राम् । १३. A बोल्लंतहो । १४. A हवाहमिलिर; P यहि मिलिस। २.१.A " विकमाणे । २. A समाणे । ३. AP सहि । ४. AP रसवितु । ५. A'कुडिसु । ६, A फणिवाइफणिमणु । ७. AF को ! ८.A मंतें सायरेण ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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