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________________ २१० [५१. १६.१२ महापुराण पत्ता इयकठे इत्त विवस ण कि पि विवाएं ।। कि सूरहु को वि वहिमु दीसह तेएं ॥१६॥ मझु वि पासिल को अगि सूरत को महिवइ बरवीरघियारच । रयणमाल बद्धी मंडलगलि ह अवगणिउ जाषि महियलि । जेण कण्ण दिण्णी भूगमणहं सो पइसरस सरणु सि हिपषणई । सो पासरच सरणु देविंदहु सो पइसरउ सरणु धरणिदछ। सोहउं कैद्धिवि अनुजि फाडमि वइपसपुरबरपंथें धामि । सवणायणियपावरस सिल पालिजह किं ण बलरें। सीह सीड सों सोसिज्जा एथहिं साहसेहिं लजिजइ। सरुणीमागणवाडयवंत किं वेहाविउ सो वरइत्तें। मणिकुंडलमंजियगंडयलई दोई वि तोडमि रणि सिरकमलई। एंव पवेषि धीर हुंकारिवि णिग्गउ मंतिमंतु अबहेरिवि । संदाणियविमाणपरिवाडिहिं परिवारिस विजाहरकोडिहिं । ओरंजंतिहिं आहषभेरिहिं सुम्यो पाइ रहि नारि । णं सायर मजायविमुकर महिहरमेहल भिवि थकाउ । पत्ता-अश्वग्रोव बोला, हे विद्वान्, विवादमें कुछ भी नहीं है, क्या तेजमें कोई भी सूर्यसे बड़ा दिखाई देता है ॥१६॥ मेरी तुलनामें संसारमें कौन बड़ा है ? कौन राजा वरवीरोंका विदारण करनेवाला है ? कुसेके गलेमें रत्नोंकी माला बांध दी गई, और मेरी उपेक्षा की गयी। धरतीसलपर जाकर जिसने भूमिपर चलनेवालोंके लिए कन्या दी है, वह आज पवन और आगमें प्रवेश करे, वह देवेन्द्रकी शरणमें जाये, वह धरणेन्द्रकी शरणमें प्रवेश करे, ससे में खींचकर आज ही फार डालूंगा और यमपुरके मार्गपर भेज दूंगा। जिसने अपने कानों में प्रावट-शब्द सुना है ऐसे बैलके द्वारा शिलाका संचालन क्यों न किया जाये.? सीह और सोधु (सिंह और मद्य ) का शोषण शोह (मद्यप और गज) के द्वारा किया जाता है, इन साहसोंके द्वारा लज्जा आती है, युवती मांगनेके लिए चापलूसी करनेवाले वरवत्तने इस प्रकारकी गर्जना क्यों की? जिसके गण्डतल मणिकुण्डलोंसे मण्डित हैं, ऐसे दोनों सिर-कमलोंको सोई गा। यह कहकर और हुँकारकर वह धीर मन्त्रीके मन्त्रकी अबहेलना करके गया। प्रदर्शन किया गया है विमानोंकी परम्पराका जिसमें ऐसी विद्याषरोंकी श्रेणियों के द्वारा वह घेर लिया गया । बजते हुए युद्धके नगाड़ोंके साथ, युगक्षयमें जैसे बजती हुई मारियों के साथ मानो समुद्र मर्यावाहीन हो उठा हो। और मानो महीपरकी मेखलाको रुख कर बैठ गया हो। १७. १. AP पासि । २. P को वि अगि । ३. A कामि । ४. AP विवाण । ५. A जुगलइ ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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