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________________ २११ -५१. १७. १५ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पत्ता-इह वाहिणभरहि वणि जलंततणुसार ॥ आवासि सेण्णु पुष्फदंतकरवारइ ॥१७॥ जय महाराणे तिसद्विमहापुरिसाणालंकारे महाकपुष्फर्यतविरहए महामध्यमरमाणु पबिप महाकम्मे विविट्ठसिंघमारणकोरिसिलुचापणं णाम एकवण्णासमो परिलो समतो घत्ता-इस प्रकार दक्षिण भरतक्षेत्रके वनमें जिसमें कि तणसमूह जल गया है, तथा सूर्यचन्द्रमाकी किरणोंको रोकनेवाले वनमें उसने सैन्यको ठहरा दिया ॥१७॥ इस प्रकार प्रेस महापुरुषों के गुणाकारों से युक्त महापुराणमै महाकवि पुष्पदन्त पारा विरचित पूर्व महामण्य भरत द्वारा भनुमत महाकाव्य में त्रिपुडके द्वारा सिंहमारण और कोटिशिक्षा उत्तासन नामक इक्यावनवा परिच्छेद समास शुभा ॥५॥ षणकणसारा। ६. A जलतणकणसारह: P गाम । ७. AP को सिलासंचालणं विविष्ट विराहरूस्लाणं
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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