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महाकवि पुष्पयन्त विरचित पई णयरणरणाहु पमाइवि पोयणेपुरवापुसा जाइवि। सामण्णहु वियलियाणणियरह कण्णारयण दिण्ण भूमियरह। पत्ता-अह सो सामण्णु भणहुँ ण जाइ खगाहिय ॥
जे मारिच सीहु चालिय सिल बसिफय णिष ॥१५॥
सं णिसुणिावे णरणाह विरुद्धस णं केसरि गयगंधषिलुद्धत। धगधगधगधगंतु चंचलसिंह घयधाराहि सित्तणं हुयबहु। रत्तणेत्तरहरावियबसदिसु पुप्फयंत णं फणि आसीविसु । णं जैउ तिहुयणगिलणकयायर परैसिरिहर असिवरपसरियकरु । पवइ सरोसु मिडिर्भसभीसणु करतलप्पताडियरयणासणु। अ जलगज हि मारिवि संगरि घिमि कयंतवणविवरंतरि । सहं जावाएं देंवि विसावलि मुक्खइ भग्गउ धर्वा पावर कलि । तहि अवसरि पालियनुषसासणु रायसहासहिं मगिर पेसणु | ते णउ पेसई सई संचालित पह हरिमस्समंति" बोलिस। जो मयवइजीविष्टं चहाला . कोलिसिलायलु जो संघरलइ।
सो सामण्णु ण होइ निरुत्ता तुम्हहुं अपणु जाहुंण जुस । छोड़कर तथा जाकर पोदनपुर नगरके राजाके अत्यन्त सामान्य, गुणसमूहसे रहित, पुत्रको मनुष्य होते हुए भी कन्यारत्न दे दिया।"
पत्ता-अथवा उस सामात्यहा हे राजन्, वर्णन नहीं किया जा सकता कि जिसने सिंहको मार डाला, शिलाको चला दिया और राजाको अपने वशमैं कर लिया ॥१५॥
__यह सुनकर नरनाथ (अश्वनीव ) विरुद्ध हो उठा मानो हाथी को गन्धका लोभी सिंह हो, धक-धक-धक जलती हुई चंचल शिखावाली, घृत पाराषोंसे सींची मयी मानो बाग हो, लाल-लाल नेत्रोंको कान्तिसे दसों दिशाओंको रेजित करनेवाला माशीविष, पुष्पके समान पतिवाला मानो नाग हो, जो मानो त्रिभुवनको निगलनेमें बादर रखनेवाला, दूसरेफी भोका अपहरण करनेवाला, असियरसे हाथ फैलाये हुए यम हो। कोषमें आकर भौंहोंसे मटोंके लिए भयंकर हाथके प्रहारसे सिंहासनको प्रताड़ित करनेवाला वह कहता है कि में आज युद्ध में ज्यान जटोको मारकर, यमके मुखविवरके भीतर हाल दूंगा और दामादके साथ उसको दिशावलि दूंगा। भूखसे नष्ट यम तृप्ति प्राप्त कर लेगा। उस अवसरपर नुपशासनका पालन करनेवाले उससे हजारों राजाओंने माज्ञा मांगी। परन्तु उसने नहीं भेजा, वह स्वयं चला। हरिएम मन्त्रीने उससे कहा कि जो सिंहके जीवका नाश करता है, जो कोटिशिलाको चलाता है, वह निश्चय ही सामान्य व्यक्ति नहीं है। इसलिए तुम्हें स्वयं जाना उचित नहीं है।
. AP पोयणपुरिबह । ७. P omits | १६. १. AP रत्तणेत्तु । २. AP अमु । ३. A सिरहर । ४. AP भिभियं । ५. P मयासण।
६. AP कयंवदंतवियरतरि । ७. AP वामाएं । ८. A पव; Pघड । ९. AP णिवसासणु । १०. AP पेसिय । ११. P हरिमंसुपुर्मतिहि बोलिर; P गरिमस्ससुमंतिहि बोभित ।
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