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________________ २०० महापुराण जेण सिलायलु णहि संचालित जेण जसेण गोत्तु खजालिन । १० दीसइवें वम्महु जेहत पर पुष्णहिं जइ लम्मा एहरु । घसा-तं पुरु पइसिवि विरझ्यपणयपसायहिं ॥ बडारिस गेहु खगवइमहिवराय हि ।।१४।। बिहि बि विषाहु तेहिं पारख कस मंडर रयणंसुसिणिद्ध । खंभि खंभि पजलियपईवहि लंबियमोसियवामकलावहिं । पवणुद्ध्यचिंधपम्भारहि मरगयमालातोरणदारहिं । वजंतहिं पडुपडहिं संखहिं णाणावाइतेहिं असंखहिं। कामिणिकरयलपलियसेसहि दियवरदेवदिण्णसीसहिं । वियसियसयदलसरलदलच्छे णियमुहिवपछलेण सिरियच्छे । परिणिय सुंदरेण सा सुंदरि गठ घर जहिं शिवसइ जगकेसरि । राउ मऊरगीवणिवतणुरुह खयरमनसुबुंबियपयसररुहु। श्रद्धचकिचकंकियकरयलु दभुयजुयअंदोलियपरबलु । १० भणिस तेण माहिकामिणिमाणेणु भुराणवर्णतवासिपंचाणु। देव तुरंगगीय बुणिरेसिउं णिसुणि णिसुणि सिहिजडिणा बिलसिउँ । नारायण है कि जिसने स्वयंप्रभाके मनका हरण कर लिया है। जिसने शिलातलको आकाशमें घुमा दिया, जिसने अपने यशसे गोत्रको उज्ज्वल किया, जो रूपमें कामदेवके समान है, यदि पुण्योंसे इस प्रकारका पति पा लिया जाये। __ पत्ता-उस नगरमें प्रवेश कर जिन्होंने प्रणय-प्रसार किया है ऐसे विद्याधर-राजा और मनुष्य-राजामें बहुत बड़ा स्नेह हो गया ॥१४॥ उन दोनोंने विवाह प्रारम्भ किया। उन्होंने रत्नकिरणोंसे स्निग्ष मण्डपकी रचना की। खम्भे-खम्भेपर प्रज्वलित प्रदीपों, लटकती हुई मुकामालाओंके समूहों, हवासे उड़ती हुई वषके प्रभारों, मरकत मालाओंके तोरणद्वारों, बजते हुए पडुपटहों-शस्त्रों और असंख्य नाना वाघों, कामिनियोंके करतलों द्वारा डाले गये निर्माल्यों, द्विषवर देवों के द्वारा दिये गये आशीर्वादों के साथ, जिनकी आँखें विकसित कमलके समान सरल हैं ऐसे, तथा अपने सुधीजनोंके प्रति वत्सल सुन्दर नारायणने उस सुन्दरीसे विवाह कर लिया और दूत वहाँ गया जहां विश्वकेशरी, मयूरप्रीव राजाका पुत्र, जिसके चरणकमल विद्याधरोंके मुकुटोंसे चुम्बित हैं, ऐसा चकसे अंकित करतलवाला और दृढ़ बाहुबलसे शत्रुसेनाको आन्दोलित करनेवाला अर्ध चक्रवर्ती राजा ( अत्यनीय ) रहता था। भूमिरूपी स्त्रीके द्वारा मान्य और संसाररूपी वनके भीतर निवास करनेवाले उससे उसने कहा, "हे देव अश्वग्रीव, ज्वलनबटीकी पण्डितों द्वारा निरस्त चेष्टा सुनिए। आप जैसे विद्यापर राजाको १५. १. A रयणंसुसमिद्धत; P रयणसुसमिझट । २. AP परणिय । ३. A माणण । ४. A पंचाणण । ५. P तुईणिरसित।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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