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________________ २०२ महापुराण विजय तिविट्ट णाम णिहरैकर समरभारैकिणकसणियकंधर । एड्छ तुरंगगेलु रिउँ तष्टु केरल आसि विसाइणहि विवरेर । एत्थुप्पण्णउ पुण्ण विषाएं मारेवउमिगइयहि जाएं। भुयहिं कोडिसिल संचालेवी वसुह तिखंड तेण पालेवी। परियणसयणहं तुहिजणेवी अण्णु तुहारी सुय परिणेवी। जैहयसै दिविजाहरराएं पई होएक्वड तासु पसाएं। एव देव हियवाद संघाउ इंभिषणे संबंधु बियारिउ। पत्ता-ता महुँ गाहेण बंधुसिणेहु गवेसिउ ॥ हणामें इंदु तुम्हहं दूयउ पेसिउ ||७|| अवरुचि पहु तेर पहुठाणउं अम्हार पाइयाणिवाणउं । रिसहहु कच्छमहाकच्छादिव जिह भरहहु षिविणमि खगाहिव । तिह सिहिजडि रविकित्ति तुदारा जिव सुहि जिंव पुणु पेसणगारा । तं णिसुणिवि णरवइ रोमंचिउ आणंद परिवार पणचित्र । सीरि पुण्ण सव्व पोमाइय हरिणा णियभुयदंड पलोइय । पुणु सो दूयउ पटुणा पुजिय ते ण वि तक्खणेण गर्न सजिल। को तौलनेवाले और अचल बलभद्र और नारायण उत्पन्न हुए हैं। विजय और विपृष्ठ नामके के कठोरकर और समरभार उठानेके कारण श्याम कन्धेवाले हैं। यह अश्वग्रीव तुम्हारा शत्रु है जो विपरीत करनेवाला विशाखनन्दी था। अपने पुण्यके विपाकसे वह यहाँ उत्पन्न हुआ है, जो मुगावतीके पुत्र (त्रिपृष्ठ) के द्वारा मारा जायेगा। वह अपने बाहुओंसे कोटिशिलाका संचालन करेगा, और उसके द्वारा त्रिखण्ड धरतीका पालन किया जायेगा। बह परिजन और स्वजनोंको सन्तोष देगा और तुम्हारी पुत्रीसे विवाह करेगा। उसके प्रसादसे तुम दोनों श्रेणियोंके विद्याधर राजा होगे।" इस प्रकार देवके हृदयमें यह संचारित किया, और फिर संभिन्नने सम्बन्धका विचार किया। पत्ता-तब मेरे स्वामीने बन्धुके स्नेहकी खोज की और मैं इन्दु नामका दूत तुम्हारे पास भेजा गया । और भी हे प्रभु, तुम्हारा प्रभुस्थान है और हमारा पाइक ( पदाति सेवक ) के रूपमें निर्माण { रचना ) है । जिस प्रकार ऋषभनाथके कच्छ और महाकच्छ राजा थे, जिस प्रकार भरतके नमि और विनमि विद्याधर राजा थे, उसी प्रकार ज्वलनजटी और अर्ककीति तुम्हारे हैं। जिस प्रकार के सज्जन हैं उसी प्रकार आज्ञा करनेवाले हैं। यह सुनकर राजा रोमांचित हो गया। आनन्दसे परिवार नाच उठा । बलभद्रने सबकी प्रशंसा की । नारायण { त्रिपृष्ठ ) ने अपने भुजदण्डको देखा। राजाने उस दूतका आदर सत्कार किया। और उसने भी तस्काल अपने जाने ४. A fणदूर। ५. A "भारकसणंकियकंधर । ६A तुरंगकछु । ७. A omits रिच | ८. K मृगवाह । ९. AP उभय । १०. AP सणेह। ८. १. APणमि । २. A पुण्णसत्ति; P पुण्ण सत्त । ३. A गठ; P समु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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