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________________ २०१ महाकवि पुष्यवात विरचित सुरणरविसहरहिययवियारा णयण विसिह णं तासु जि केरा । जाहिरूपसिरि ण परपराश्य सा फुल्छति वेल्लि जिह जोइय । ताएं धीय वीय चंदें बोल्लि सज्जणणयणाणंदें। दुम्मयमलकलंकपक्खालणि मंनिहिं अग्गइ मंतिणिद्देलणि । भो संभिण्ण णिसुयोइससुय भणु भगु कासु धरिणि होसइ सुय । भणु भणु भन्न मजझु भवियपई पई दिट्ठाई अणेयइ दिवई । देहदित्तिणितेइयचंबई केवलणाणधेरई रिसिवंदई। ता संभिपणे भणि णिसामहि मई चिरु पुच्छिये संजय सावहि । दाहिणभरहि सुरम्मइ मंडाल घरसिहरालिंगियरषिमंडलि । बचा-पोयणपुरि राउ जसु जसु देवहि गिज्जइ।। पालियसम्मत्तु जो जिणणय पडिवज ॥६॥ चिर पुरुएबहु दिग्गयगामिहि जो बाहुबलि पुत्तु जगसामिहि । भरहु जेण मुयदंडहिं भामिड जो जायज पंचमगागामिन । पुरिसपरंपराहि तहु जायउ णाम पयावइ जो विक्खायउ । जयंबद्ध तासदेवि गरुयारी अवरमिगाव पाणपियारी। अचल पबलमुयतोलियगुरुगिरि ताई.बिहिं वि जाया हलहर हरि। ५ भालपट्ट कामदेवका पट्ट है । उसके बालोंका कुटिल कौटिल्य भो इसीका है। सुर-नर और विषधरोंके हृदयका विदारण करनेवाले उसके नेत्र भी कामदेवके हो तीर हैं। जिसकी रूपलक्ष्मी दूसरों के द्वारा पराजित नहीं है, वह खिली हुई लताके समान देखी जाती है, पितासे पुत्री ऐसी लगती है जैसे चन्द्रमासे द्वितीया । सज्जनोंके नेत्रोंको आनन्द देनेवाले राजाने दुर्मद-मल कलंकका प्रक्षालन करनेवाले मन्त्रणावरमें मन्त्रियोंसे कहा, "हे ज्योतिषशास्त्रका अध्ययन करने वाले संभिन्न ( मन्त्री ), बताबो-बताओ यह कन्या किसकी गृहिणी होगी। हे भव्य, तुम मेरा भवितव्य बताओ, तुमने अनेक दिग्य शरीरकी कान्तिसे चन्द्रमाको कान्तिहीन कर देनेवाले केवलज्ञानधारी ऋषिसमूह देखे हैं।" तब संभिन्न मन्त्रीने कहा "सुनाता है, मैंने बहुप्त पहले संजय नामक अवधिज्ञानी मुनिसे पूछा था । (और उन्होंने कहा था), दक्षिण भरतक्षेत्रके सुन्दर देशमें जिसमें कि गृहशिखरोंसे सूर्यमण्डल आलिगित है, घसा-पोदनपुर नगरमें राजा है, जिसका यश देवोंके द्वारा गाया जाता है। सम्यक्त्वका पालन करनेवाला जो जिननयको स्वीकार करता है ।।६।। प्राचीन समयमें पुरुदेवके दिग्गजगामी विश्वस्वामो ( ऋषभदेव ) का ओ बाहुबलिदेव पुत्र था, जिसके द्वारा भरतदेव अपने भुजदण्डोंके द्वारा घुमा दिया गया था, और जो मोक्षगामी हुए थे, उसीको पुरुष परम्परामें उत्पन्न प्रजापति के नामसे विख्यात राजा है। जयवती उसको बड़ी पत्नी है और दूसरी प्राणप्यारी मुगावती है। उन दोनोंसे, अपने प्रबल बाहुओंसे मन्दराचल ५. Aणवर पराश्य । ६.A णिसुणि जोइससुय; P गिसुणि जोइयसुय । ७. A जिसेयर। ८.A परियरिसि । ९. AP पुन्छि । ७.१ AP सामिन । २. A जइवय । ३. K मृगावा प्राण ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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