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________________ २०० महापुराण [५१. ५.१ महिणाहेण उसु पइसारहि पुरिसु संसामिकचरहसारहि। ता कणइल्ले आणिवि दापित खयरु णवंतु अजन्यु विहाविउ । बहु पणवंत णियडड आसणु दरिसिई मणिगणकिरणुभासणु। इद भणिवि जाणि मुहराएं पियवयणहिं संभासिउराएं। काहि होतत सुंदरणिकेयस को तुहुँ कह सु कासु किं आयडे | अक्खड विर्ययर पालियनोणिहि रुपयगिरिवरदाहिणसेणिहि । णमिकुरणहयलयलय सरु रिद्धिद णं सयमेव सुरेसरु । रहणे उरपुरवरपरमेसर देव जलेणजडि णाम खगेसरू । वाग्वेय पिययम लीलागइ अककित्ति तणुरुहुणं रइवह । धूय सयंपह किं वपिणाम् मुहससिजोण्हइ चंदु कि खिजइ । घत्ता-वहार भग्गु जाहि मझु किसु सोह॥ हपंतिपहाइ तारापति ण रेहइ ॥५॥ १० ६ करकमयलाई कुमारिहि रत्तई णादिहि जइ गंभीरिम दीसह भालवद पटटु व रइरायह ताई कुमारसहासई रत्तई। ते मुंणिहि वि गंभीरिन पासइ । चिहुरकुडिलकोडिल्लु व आयहु । महीनाथने कहा कि अपने स्वामीके कार्यरूपी रथका निर्वाह करनेवाले उस पुरुषको भीतर प्रवेश दो। तब प्रतिहारीने उसे बुलाकर दिखाया। प्रणाम करता हुआ वह विद्याधर मुन्दर दिखाई देता था । प्रणाम करते हुए उसे मणिकरण-समूहसे आलोकित आसन पास हो दिखाया गया। इष्ट समझकर उसने मुखके भावसे जान लिया। राजाने प्रिय शब्दोंमें उससे बातचीत की कि तुम्हारा सुन्दर घर कहाँ है, तुम कौन हो, किसके हो। यहाँ क्यों आये ? विद्याधर कहता है कि धरतीका पालन करनेवाले विजया पर्वतको दक्षिण श्रेणी में है देव, ज्वलनजटो नामका राजा है, जो नमिकुलके आकाशमण्डलका सूर्य है, ऋद्धिमें जो मानो स्वयं इन्द्र है और रथनूपुर नगरका परमेश्वर है। लोलापूर्वक चलनेवाली उसकी वायुवेगा नामकी प्रियतमा है। और पुत्र अर्ककीति है जो मानो कामदेव है । उसकी कन्या स्वयंप्रभाका क्या वर्णन किया जाये ? वह अपने मुखरूपी चन्द्रमाको ज्योत्स्नासे जो चन्द्रमाको भी खिन्न कर देती है। पत्ता-स्तनभारसे भग्न जिसका दुबला पतला मध्यभाग नखपंक्तिप्रभासे इस प्रकार शोभित है, मानो तारापंक्ति शोभित हो ॥५॥ - - कुमारीके कररूपी कमल रक्त ( लाल ) हैं। उनसे हजारों कुमार अनुरक्त हैं । उसको नाभिमें जो गम्भीरता दिखाई देतो है, उससे मुनियोंकी भी गम्भीरता नष्ट हो जाती है। उसका ५. १. AP सुसामि । २. K पुरावयहि । ३. P कामु कहसु कहिं । ४. A वहयरु । ५. A जहणजहि । ६. AP थणभार। ६. १. A? कमलयई । २. AP तहि । ३. A गंभीरिम । ४. A भालबद्ध पटु व; P भालवटु वटु व ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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