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महाकवि पुष्पवन्त विरचित
पत्ता - जो पयसंता पलयसिहि व्व पलित्तर ॥ सो हिउ मयारि लोहियसलिलें सित्तड ||३||
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५१.४.१४ ]
करतलपचूरियेदुग्धो सुरसीमंतिणिकामुकोयणु आया ते तं पुणरणि पोयणु पर्याहि पतऊहियवाएं पुच्चि दाणववइरिसें तं णिसुणेवि तेण अवगविण Tore सगुण संसइ लजाइ एंब ताई बहुसंपयसारा चविकहिं दिणि परमणहार 8 हरि विष्णु आयासें कंठ्य कडयम डकुंडलघरु वारवार महुं वयणु णिरिक्खड़
freबलु कसिवि सीसवट्टइ ! हिवि विजेयहि अवलोयणु । णं ससर दियर गयणंगणु | दोणि मेह णं संसाराएं । कि केसरिकिसोर पई मारिउ । नाविडं सीसु ण अप्पल वणिच । ऊगड गुणथुइ महरह मज्जइ । जंति दियह सुमणोरगारा । कंणवेत्तपाणि पडिहारउ । आउ एक्कु पुरिसु आयासें । वियामि किं सुरु किं णहरु । recording खइ |
घत्ता - जइ अवसर अस्थि त सो पइसारिजइ ।
जं भासह किंपि तं परेस णिणिज्जइ ||४||
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घसा - प्रजाका सन्तापकारी जो प्रलयकी अग्निकी तरह प्रज्वलित था वह मारा गया सिंह रक्तरूपी जलसे सिक हो उठा ||३||
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हथेली के प्रहारसे हाथीके चूर कर लेनेपर, सिहरूपी कसोटीपर अपना बल कसकर, देवबालाओं को कामोत्कण्ठा उत्पन्न करनेवाला विजयलक्ष्मीका उत्पन्न कटाक्ष प्राप्त कर वे दोनों पोदनपुर नगर आ गये, मानो आकाश में सूर्य और चन्द्रमा आ गये हों। पैरोंपर गिरते हुए उन दोनोंका पिताने आलिंगन किया, मानो सन्ध्यारागने मेघका आलिंगन किया हो। फिर उससे दानवराजके शत्रुने पूछा कि तुमने सिंहके बच्चेको किस प्रकार मारा! यह सुनकर उसने उसकी उपेक्षा की, उसने सिर झुका दिया परन्तु अपना वर्णन नहीं किया ! महान् या भारी आदमी अपनी गुण प्रशंसासे लज्जित होता है, छोटा आदमी गुणस्तुतिको मदिरासे मतवाला हो जाता है । इस प्रकार प्रचुर सम्पत्ति से श्रेष्ठ तथा सुन्दर मनोरथोंसे परिपूर्ण उनके दिन बीतने लगे। इतने में एक दिन दूसरेके मनका हरण करनेवाला हाथ में स्वर्णदण्ड लिये हुए प्रतिहारी राजासे कहता है कि बिना feat area एक आदमी आकाशमागंसे आया है। कण्ठा कडेक, मुकुट और कुण्डल धारण किये हुए है, में नहीं जानता कि कोई नभचर है या देव । बार-बार मेरा मुख देखता है, और तुम्हारे चरणकमलको देखने की इच्छा करता है ।
घन्ता - यदि अवसर हो तो उसे प्रवेश दिया जाये, और यह जो कुछ भी कहता है, हे नरेश, उसे सुना जाये ॥१४॥
८. AP हिय ।
४. १. Aो । २. सजयलच्छि । ३. पत विजोहिय; P पडत विहिय; T अवगृहिय ब्रालिङ्गितौ । ४. AP “वेरिव । ५. A पसंसण लज्जइ । ६. करकमलो । ७. Pa