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________________ १६८ महापुराण [ ५१. २. ११पेसिउ जणणे चलिउ हलहरु ते सहुँ चलिउ भाइ दामोयरु। णरकवालकंकालगिरंतर पत्ता केसरिगिरिफुहरंतर। पत्ता-भडरोलहु सीह कुंदच्छवि श्रद्धाइज ।। भाइहिं आवंतु णं कयतजसु जोहडे ।।२।। विक्खणक्खणिक्वषियमयगलो पयविलग्गमुत्ताहलुज्जलो । रससित्तकेसरसखालओ सिसुमियंकदाढाकरालओ। महिसमणुयपलकवलभोयणो सिहिफुलिंगपिंगलविलोयणो। कुडिललुलियलंगूलपिंधओ णासगहियपद्धिसुडगंधओ। फंठराणिइलियविकारी एरिसो सरोसेण केसरी) पहुबलखमियवीरविकर्म आप देश किर सीरिणो कम। ताव तेण लड्डुपण भाइणा लोयजीवदाणेशदाइणा। विसतमालकालिंदिकंतियों करजवं पि वामेण पाणिणा । मर्यवइस्स धारयं बला बलं बेलिविरोहिणो कस्स मंगलं । उच्छलंतदंतावलीसियं दाहिणेण हत्थेण णिश्यं । ताडिओ मुहे पाडिओहरी संसिओ महीसेहिं सो हरी । माइवेण कय णिव विदोहओ दबूढ़देहिदेषिवो है.ओ। आज मैं सिंहका प्रलय देखूगा।" पिताके द्वारा प्रेषित बलभद्र चला, उसके साथ भाई दामोदर चला । मनुष्योंके कपाल और हड्डियोंसे परिपूर्ण, सिंह को पर्वत गुफामें वे लोग पहुंचे। पत्ता-स्वर्ण के समान कान्तिवाला सिंह योद्धाओंके हल्लेसे दौड़ा । दोनों भाइयोंने उसे आते हुए यम-भय की तरह देखा ॥२॥ . ... . -- जिसने अपने तीखे नखोंसे मदगजोंको आहत किया है, जो झरते हुए मोतियोंसे उज्ज्वल है, जो लाल और श्वेत अयालसे युक्त है, बालचन्द्र के समान वाढोंसे जो भयंकर है, महिष और मनुष्योंके मांसका जिसका भोजन है, बागके स्फुलिंगके समान जिसके नेत्र पीले हैं, जो टेढ़ी और पंचल पूछको पताकावाला है, जो प्रतिसुभट (शत्रु ) की गन्ष अपनी नाकसे ग्रहण करनेवाला है, अपने फण्ठके शन्दसे जिसने दिग्गजका शब्द नष्ट कर दिया है, इस प्रकारका वह सिंह क्रोषपूर्वक बहुबलसे वीरोंके पराक्रमको आक्रान्त करनेवाला अबतक श्रीबलभद्र के ऊपर पैर दे तबतक लोक जीवनदानमें एक मात्र दानी तथा विष तमाल और यमुनाके समान कान्तिवाले उस छोटे भाईने उस सिंहके दोनों पैर और अयाल बलपूर्वक पकड़ लिये । बलवानसे विरोध करनेवाले किसका मला हुआ है ? उछलती हुई बन्तावलीको सफेवीको उसने दायें हाथसे दलित कर दिया। मुखमें आहत किया। सिंह पीड़ित हो उठा । राजाओंने वासुदेवकी प्रशंसा की। इस प्रकार माधव, मे, जिसने राजासे विद्रोह किया है ऐसे दग्ध देहीके देह स्वरूप उस वृक्षको आहत कर दिया। ११. A कयंतजम; P कयतु जसु । १२. P जोविठ । ३. १. AP बहबलपकमिय। २. AP add after this : बाहुउचलतुलिय (A तुडिय ) दंतिणा, करमहंसुपविरायसुदरूपं, वामएण चल (A वल) चरणजुयलयं, सुहडसंगरुम्बूढमाणिणा । ३. AP करजुयं । ४. A मइवहस । ५. AP बलविरोहिणो। ६. AP विदोहरो । ७. A हो ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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