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________________ -५१.२.१० ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित सेहोर रुजतु दुइ कंदमाणु खराभयवेविरमणु तं सुणिवि पडिलबइ पयावर माणुसु चित्तालिहिण चुक्केछ । देवदेव खद्धव सयलु बि जणु । भो भो मंति चारु तेरी मद्द | पत्ता- जो ण करइ राट पर्यादि रक्ख सो केउ || स्वर्ण णासिवि जाप संक्षाराएं जेह ||१|| जो गोबालु गाई उ पाइ eg महेली जो उ रक्खइ जो माला बेलि र पोसइ जो कह ण करइ मणहारिणि कड़ जो जब संजजण यागइ जो पहु यहि पीड पर फेडर जो संतु सी सई मारविं एंव भणेवि लेवि असि दारुगु ता पंजलियरु विजय पर्जपेई आपसु देव हवं गच्छमि २ सो जी दुद्ध ण शिहालइ । सुरयसोक्खु सो केहि किर चक्खड़ । सो सुन फ्लु केंद्र लसइ । सोच कर अॅप वह । सो जग्गणमत्त माणइ 1 सो अपणु अपाण पाडइ । देस पडिय मारि णीसारविं । रिंदु वारुणु । पर कुंचायी पद अज्जु मइंद पलड नियच्छमि । १९७ १५ १० एक गरजता हुआ सिंह आता है, जो चित्रलिखित मनुष्यों तकको नहीं छोड़ता । विनाशके भयसे काँपते हुए मनवाले और रोते हुए सब लोगों को, हे देवदेव, उसने खा डाला है।" यह सुनकर राजा प्रजापति कहता है- "हे मन्त्री, तुम्हारी बुद्धि सुन्दर है ।" पत्ता- "क्योंकि जो प्रजाकी रक्षा नहीं करता, वह राजा शीघ्र उसी प्रकार नष्ट हो जाता है कि जिस प्रकार संध्या राग नष्ट हो जाता है ||१|| २ जो गोपाल गायका पालन नहीं करता, वह जोते जी उसका दूध नहीं देख सकता, अपनो प्रिय पत्नीको जो रक्षा नहीं करता, वह सुरति कोड़ाका सुख कहाँ पा सकता है ? जो मालाकार ( माली ) लताका पोषण नहीं करता वह सुन्दर फूल और फल किस प्रकार पा सकता है, जो कवि सुन्दर कथा नहीं करता यह विचार करता हुआ भी अपनी हत्या करता है । जो मुनि संयम की मात्रा नहीं जानता, वह नंगा है, और नग्नस्वको ही सब कुछ मानता है। जो राजा प्रजाकी वेदना नष्ट नहीं करता वह अपनेसे अपनी हत्या करता है, इसलिए मैं स्वयं जाता हूँ और गरजते हुए सिंहको स्वयं मारता हूँ । देशमें आयी हुई मारीको बाहर निकालता है। यह कहकर और भयंकर तलवार लेकर क्रोधसे लाल-लाल राजा जब तक उठा, तबतक अंजली जोड़कर विजय बोला, "हे राजन्, आपके क्रुद्ध होनेसे जग कांप जायेगा ? आदेश दीजिए देव, में जाता हूँ ? ७. भुंजंतु 1 ८. P पक्कच । ९. P थुक्कउ I २. १. P गोवि । २. APफिर कह ३. P मालाया । ४. P सफुल्लु । ५. A अध्यक्ष अप्पावह ६. A संजमु जुत्ति; P संजमजत्ति । ७. 4 फेडइ । ८. A सो विरसंतु । ९. A पर्यपह १०. AP जमु 1
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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