SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संधि ५१ माणुसई गिलंतु भुयबलविकमसार ।। पंचाणणु भीमु मारिउ रायकुमार ॥ध्रुषको। पायणिवायपणावियमहियल पंकयकुलिसकलसलक्खणधर पोरिसपवररयणरयणायर जायासीधणुतणु गुणमणिगिहि धवल कसण सविणयपीणियजण कायर्कतिधवलियकालियणह तेहिं बिहिहि" सो सहइ महीसंरु जावच्छह हरिवीदि णिसण्णउ सो पभणह चंगउ पालियपय पविमलकमलालंकियउरयल । रायहंससेविय णं सुरसर । सम वढिय ते बिणि वि भायर । असिजालारालखलकुलसिहि । णावइ सरयसमय सावणघण । णं गंगाणा जउँणा जलवह । यिहि पक्वहिं णं पुण्णिमवासरु । देसमहंतउ ता अवइण्णउ | भोणियमउडकोडिलालियपय । १० सन्धि ५१ बाहुबलके पराक्रममें श्रेष्ठ राजकुमार (छोटे भाई) ने मनुष्योंको खानेवाले (आदमखोर) भयंकर सिंहको मार दिया। पैरोंके निपातसे जिन्होंने धरतीको हिला दिया है, जिनका उरतल पवित्र कमलोंसे अलंकृत है, जो कमल वस और कलशके लक्षणोंको धारण करनेवाले हैं, जो मानो मानसरोवरको तरह, राजहंसों (श्रेष्ठ राजाओं, श्रेष्ठ हंसोंसे सेवित है) जो पौषष रूपी श्रेष्ठ रनोंके समुद्र हैं, ऐसे वे दोनों बड़े भाई साथ-साथ बढ़ने लगे (बड़े होने लगे) । अस्सी धनुष प्रमाण शरोरवाले वे दोनों गुणसमूहके निधि थे। अपनी तलवाररूपी ज्वालासे वे, शत्रुकुलके लिए अग्निके समान थे। अपनी विनयसे लोगोंको प्रसन्न करनेवाले गोरे और श्याम, वे दोनों जैसे क्रमश: शरद् और श्रावण समपके मेष थे। अपने शरीर को कान्तिसे आकाशको धबल और श्याम बनानेवाले वे मानो गंगा नदो और यमुना नदीके जलपथ थे। उन दोनोंसे बह राजा ऐसा शोभित था मानो दो पक्षों (शुक्ल, कृष्णपक्ष) से युक्त पूर्णिमाका दिन हो । जब वह सिंहासनपर बैठा हुआ था कि एक मन्त्री उसके पास आया। वह बोला-“हे प्रजापालक, सब कुछ ठोक है, राजाओंके करोड़ों मुकुटोंसे लालितचरण हे देव, - -- - A has, at the beginning of this Sandhi the stanza जग रम्म हम्मं etc. for which see foot-note on page 139. P and K do pot give this stanza here. १.१. AP'पणाभिय । २. AP सेविय सरवर । ३. A असिधाराकराल । ४. A जवणा । ५. AP विहि मि । ६. A महीहरु । - - -
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy