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५०. १२. १६]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित काधि जिनमुनयना ते दो वि देव देवासया। पित्तियभत्तिज्रय बद्धपणय संजाया सुंदर ताई तणय । जवाहि जाउ हिमैसियसरीरु बलेंदु बालु णं दुरहीरु । णारितणगुणवडियहि सईहि हुउ कण्हु जि कण्हु निगावईहि। जयवंतु एक्कु तर्हि विजड गणिर्ड बीयउ पुणु विठु तिषिदा भणिज । पत्ता-णि वि सह खेलंति मुयबलसियदिग्गय ।।
भरहदियंतपयासि "पुष्पदंत नग्गय ॥१२॥
इप महापुराणे विसटिमहापूरिसगुणालंकारे महाकापुष्यंतहिए महामसमरहाशुमपिणए महाकम्ये पकववासुदेवटप्पत्ती णाम
मण्णासमो परिच्छेत्री समतो ॥१०॥
अत्यन्त सुन्दर भृगनयनी, मन्दगामिनी सुन्दर मृगावती थी। दोनों ही मानो घरसोपर अन्धकारको नष्ट करनेवाली दीपिकाएं थीं। उन्होंने रात्रिमें स्वप्न में सूर्यको देखा । जहाँ सैकड़ों सुखोंका मोग किया है ऐसे देवायसे वे दोनों प्रणयबद्ध देव (चाचा और भतीजे) उनके सुन्दर पुत्र हए । जयवतीके हिमके समान सफेद शरीरवाला बालक बलभद्रं हुआ जो मानो बालचन्द्र था। तथा नारीत्वके गुणसमूहसे घटित सती मृगावतीसे कृष्ण कृष्ण हुए (श्याम वासुदेव हुए)। अयसे युक्त एकको वहाँ विजय कहा गया और दूसरेको विष्णु त्रिपृष्ठ ।
पत्ता-अपने बाहुबलसे दिग्गजोंको दूषित करनेवाले वे दोनों साथ-साथ खेलते थे, वे ऐसे लगते थे मानो दिगन्तको प्रकाशित करनेवाला नक्षत्रसमूह उत्पन्न हुआ हो ||१२||
इस प्रकार प्रेसठ महापुक्ष्योंके गुणालंका ने युक्त महापुराण, महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामन्य भरत द्वारा अनुमत महाका मे बळदेव
बासुदेव उत्पत्ति नाम का पचासवाँ परिष्येद समाप्त हुभा ॥५॥
३. A हिमसब । ४. AP इलएन । ५. A छुडहीर; P छुड्ड हीरु। ६. K मृणावईहि । ७. P विजउ । ८. A मणिउ । ९. A गणित । १.. P भूसिय । ११. AP पुष्फर्यंत ।