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________________ १९४ ५ १० ५ जाएण तेण णवजवणेण पडिवक्खलक्ख व लदुम्मणे । अविलय णिलय कंपावणे स्वयरिदबिंदकंदावणेण सरणागयजणपपिंजरेण काणी नदीकुलदिहिकरेण महापुराण करलालियसिरिरामाथणेण । चंदबिभीसाबणेण । भूगरपुर संतावणे | करिणा इव दाणोलियकरेण । सुहवत्तणजियमणसियसरेण । पत्ता - आसग्गीदें तेण रिड हय हरिणा इव करि ॥ असिधार तासिवि गहिय तिखंड वसुंधरि ॥११॥ १२ उग्गपावरवियर करालु विद्धंसियवर सुह डावखु तिरथयर पवित्तियवित्थणिरहि बहुरमणिरमणसं पणविल पोयणपुरु सुरपुर सोहारि adming oयारि तहु पढमदेवि जयबह पण अण्णेक चारु विस्थिण्णरमण दोहिं विदीविय महि तिमिरजूर [ ५०. ११.५ वसुम मुंजंतु पहु कालु । परिवडि सोपवावु । तापविलजंबूदीषभरहि । परिपालियधम्मि सुरम्मि विसइ । त िवस राहि दंडधारि । णामेण पयावर विजियारि । विवरविणिग्गय नायकण्ण । मृणयण सृगावइ मंदगमण | णिसि सिविणs दिट्ठा चंद्रसूर | वह उसका अग्रीव नामसे पुत्र उत्पन्न हुआ जिसने अपने हाथसे लक्ष्मीरूपी रामाके स्तनोंका लालन किया है। जो प्रतिपक्ष लक्षसेनाका नाश करनेवाला है, जो पृथ्वीवलयरूपो घरको कंपाने वाला है, जो सूर्य-चन्द्र के बिम्बके समान भीषण है, जो विद्याधर राजाओंको रुलानेवाला है, जो मनुष्यों के नगरोंको सन्त्रास देनेवाला है, शरणागत मनुष्योंके लिए जो वञ्चपंजरके समान है, जो हाथी के समान दानसे ( मदजल और दान ) आर्द्रकर ( गोली सूंड अथवा हाथ ) है, जो कन्यापुत्रों और दीनकुलोंके लिए भाग्यविधाता है, जिसने अपने शुभ आचरणसे कामदेवके तीरोंको जीत लिया है 1 घता - ऐसे उस अश्वग्रीवने उसी प्रकार शत्रुको नष्ट कर दिया है जिस प्रकार सिंह हाथी को नष्ट कर देता है। उसने अपनी तलवारकी धारसे सन्त्रस्त कर त्रिखण्ड धरती ले ली || ११ ॥ १२ उद्गत प्रताप जो सूर्य किरणोंकी तरह भयंकर है ऐसा वह लम्बे काल तक धरतीका भोग करता हुआ तथा श्रेष्ठ सुभटोंके अहंकारको नष्ट करनेवाला वह प्रतिवासुदेव बन गया। तब तीर्थंकरोंके द्वारा प्रवर्तित तीर्थोंसे जो पवित्र है, ऐसे विशाल जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र है । वहाँ जिसमें अनेक बी-पुरुष विषयोंसे परिपूर्ण हैं, और जिसने धर्मका परिपालन किया है, ऐसे सुन्दर देश में सुरपुरकी शोभाको धारण करनेवाला पोदनपुर नगर है । उसमें दण्डको धारण करनेवाला, भुवनका एकमात्र सिंह सबका उपकार करनेवाला और शत्रुविजेता प्रजापति नामका राजा था। उसकी प्रथम पत्नी प्रसन्न जयवती थी, जो मानो वित्ररसे निकली हुई नागकन्या थी । एक और दूसरी २, AP add after this : पलमणिलजाला दुस्सहेण । ३. A करिणा विय । १२. १. AP जादि २. AP मगणयण मिगां ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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