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महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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कयपक्षक्खाणपयासणेण
तांवहि वि मरिवि संणासणेण। जहिं तायभाउ जायउ अदीगु एहु वि दूसहतषचरणखीणु । तहि देहमा कपि मणोहिरामि दछहजलणिहिबद्धाउधामि । उप्पण्णउ सल्लहियंतरंगु
कम्मेण ण किज्जइ कासु भंगु । ते बिपिण वि सुरवर बद्धणेह ते चिणि वि लायण्णंबुमेह । ते विणि वि णिच्चु जि सह वसंति ते चिण्णि वि तारतुसारकेति । ते बिणि विणं तिब्दसुओय ते बिणि वि फयकीलाविणोय । ते बिणि वि दिवि अच्छति जाव एतहि दि अवरु संभवइ ताय । णिवेएं. लइज विसाहणंदि जिणतवता तावेवि घोंदि । माणिकमऊहोहामियकि संभूयउ सो वि महंतसुकि। घत्ता-एयह दोह वि ताहं देवहं वियलियइरिसई ॥
थर आउपमाणु जझ्यहूं कावयवरिसई ॥६॥
वइयहुं वेयवारूद्वियाहि अलयाणयरिहि पहु मोरगीउ देव वि रणरंगि तसति जासु जो चिरु विसाइणदि त्ति भणित
तिजाहरउत्तरसेढियाहि । थिरथोरबाहु सलगी। णीलंजणपह महरवि तासु । सो ताइ पुत्तु हरिगीत जणिउ ।
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प्रत्याख्यानका प्रकाशन करनेवाले संन्याससे मृत्युको प्राप्त होकर, जहां उसका मदीन चाचा उत्पन्न हुआ था, असा तपश्चरणसे क्षीण वह भी शल्यको अपने मनमें धारण कर सोलह सागर आय प्रमाणवाले सुन्दर सोलहवें स्वर्गमें उत्पन्न हुआ। कर्मके द्वारा किसका नाश नहीं किया जाता। वे दोनों ही देव एक दूसरेके प्रति स्नेहसे प्रतिबद्ध थे। वे दोनों ही लावण्यरूपी जलके मेघ थे । वे दोनों ही प्रतिदिन साथ रहते थे। वे दोनों ही स्वच्छ तुषारकी तरह कान्तिवाले थे। वे दोनों हो सूर्य-चन्द्रमाके समान थे। वे दोनों ही क्रीडा विनोद करनेवाले थे। ये दोनों जबतक स्वर्गमें थे, यहां भी तबतक दूसरी घटना हो गयो । विशाखनन्दोको वैराग्य हो गया। वह भी जिनवरके तपतापसे तपकर माणिक्यको किरणों के समूहसे सूर्यको तिरस्कृत करनेवाले महाशुक्र स्वर्गमें देव हुआ।
धत्ता-इतने में इन दोनों देवोंका भी विगलित है हर्ष जिनमें ऐसे कई वर्षोंका आयु प्रमाण रह गया ॥१०॥
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विजया, नामसे प्रसिद्ध विद्याधरोंकी उत्तरणिकी अलकापुरी नगरीमें स्थिर और स्थूल बाहु तथा सिंहके समान गरदनवाला मयूरोव नामका राजा हुआ। जिससे युद्ध में देव भी त्रस्त रहते हैं, ऐसे उसकी नीलांजन प्रभा नामकी महादेवी थी। जो पहले विशाखनन्दो कहा गया था,
१०. १. AP दहमि काप्प सुमणी । २. A सप्लातरंगु । ३. AP एत्तह वि । ११. १. ६ बेज्जाहर।
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