SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२ १० ५ लक्खणणंदेणु हमसिरिविलामु surat बुद्धिसंधियमणेण महापुराण frs महुरहि जाइवि कयणिवासु । जीव कासु वि मंतिणेण । धत्ता - एत्थु ण किज्जइ दप्पु लच्छिण कासु वि सासैंय || जे गय गयखं हि ते पुणे पायहिं गये ||८|| मुणि विस्सदि ता वहिं जि कालि मञ्झन्हवेलि खरकिरणजालि । कंकालसेसु गयर हिमासु । अहिणवपसूयगिट्टि पिट्छु । वितु तेण पिसुणेण दिनु । बहुजम्मण मरणुकंठिएण । खंभ भग्गा करेण । पडिओ सिविइंडियमाणसिंगु । खद्धो समझ पावेण पाव । पत्ता- तं णिसुणिषि सवर्ण बद्धउं रोस नियाणएं । फयपक्खमासदीहोदवासु तं पुरवर सो चरिहि पहु णिट्टाणिट्टिङ जइबर रिट्ठ बेसाउलि परिट्ठिएण वह सिङ साहु पन्थिनरेण चिरु पंषहि गाइविट्टियंगु फिग्गुण निधिण दुज्जण सगाव : आगामिणि भवि तुझु हसियहु करमि समाण ||२९|| [ ५०.८.७ १० नष्ट हो चुका है श्रीविलास जिसका ऐसा लक्ष्मणाका पुत्र मथुरा में घर बनाकर रहने लगा। जिसमें अनवरत बुद्धि सन्धानमें मन रहता है, ऐसा किसीका मन्त्रित्व करते हुए वह जीवित रहता है। धत्ता -- इस संसार में घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि लक्ष्मी किसी के पास शाश्वत नहीं रहती । जो कभी हाथी के कन्धों पर चलते हैं, वे फिर पैरों चलते हैं ॥८॥ ३. A गंदण । ४. P सासया ५. AP ते पुरवि । ६. P गया । ९. १. AP हि । २. रंक खंभ । ३. AP समर्पण 1 जिन्होंने एक पखवाड़ेका लम्बा उपवास किया है, जो कंकालशेष हैं, जिनका रुधिर और मांस जा चुका है ऐसे मुनि विश्वनन्दो, उसी समय सूर्यको प्रखर किरणोंसे युक्त मध्याह्न वेलामें उस नगर में चर्याके लिए प्रविष्ट हुए। उन्हें नयी प्रसूतवतो गायने गिरा दिया। तपस्यासे क्षीण छन मुनिवरको वेश्याके सोधतलपर बैठे हुए उस दुष्टने गिरते हुए देखा। अनेक जन्म और मरणोंके लिए उत्सुक उसने साधुका उपहास किया कि भूतकालमें राजाके रूपमें तुमने हायसे वृक्ष और मोंको नष्ट किया था। इस समय गायके द्वारा विखण्डित शरीर और खण्डित गर्षशिखर तुम पड़े हुए हो। हे निर्गुण, निचिन, दुर्जन, सगर्व पाप, तुम मेरे पापसे नष्ट हुए हो । घसा - यह सुनकर श्रमणने क्रोधसे यह निदान किया कि आगामी भनमें मैं तुम्हारी हंसीका समान फल बताऊंगा ||९||
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy