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महापुराण
(५०.६.१
पुणु दलिइ खंभि परिगलियमाणु वणु मेल्लिवि हरिणु व धावमाणु । णीसासवेयवढियकिलेसु णीसस्थहत्य णिम्मुझकेसु । अवलोइविभाइपलायमाण करुणारसि था सुहडमाणु । पभणइ मा णासाहि आउ आउ
सहि अवसरि पत्तत्र सहि जिराव । जुवरायहु कह विसाहभूइ लइ लइ सुंदर तेरी विलूइ। इहु जान जाउ कि आयएण कि कुच्छियपुत्तें जायएण। सिलफोडणमुयमाइप्पदप्प असघिओ सिम समाइ बध । अइणिददिक्ख मई सरणु अजु परिपालहि तुई अप्पणउ रजु । पत्ता-बंधवहरकरीहि णिविण्णउ णि रिद्धिहि ॥
पुत्त परिच्छहि पट्ट हे लग्गमि तवसिद्धिहि ॥६॥
खगों मेहें किं णिज्जलेण मेहें'कामें कि जिरवेण्ड कन्वं णडेण किंणीरसेण
दचे भव्य किं णिवपण ५ तोणे कणिस किणिकण
तरुणा सरेण किं णिप्फलेण । मुणिणा कुलेण कि णित्तवेण । रज भोजे किं परवसेण। धम्में राएं किं णिहएण। चावें पुरिसें कि णिग्गुणेण ।
खम्भेके टूटनेपर, वन छोड़कर गलितमान हरिणके समान दौड़ते हुए, निश्वासके वेगसे जिसका क्लेश बढ़ रहा है, ऐसे शस्त्ररहित हाथवाले और मुक्तकेश भागते हुए भाई को देखकर वह सुभटसूर्य करुणा रसमें डूम गया। वह कहता है-हे भाई, मत भागो, आमो-आयो । उसी अवसरपर वहाँ राजा आया। विशाखभूति युवराजसे कहता है-“हे सुन्दर, तुम अपना ऐश्वर्य ले लो, यह पुत्र पुत्र क्यों हुआ? इस कुत्सित पुत्रके होने से क्या । शिला फोड़नेवालो. भुजाओंके दर्पवाले हे सुभट, क्षमा करो, तुम्हारे साथ कपट किया । आज मुझे जैन दीक्षा शरण है। तुम अपने राज्यका पालन करो।"
पत्ता-इस प्रकार भाइयों में शत्रता उत्पन्न करानेकाली राजाको ऋद्धिसे वह विरक्त हो गया। हे पुत्र, राज-पाट ग्रहण करो, मैं तपसिद्धिके मार्ग में लगूंगा ॥६॥
बिना पानीके मेव और खड्गसे क्या? निष्फल (फल और फलक) से रहित वृक्ष और फलसे क्या? द्रवण (क्षरण) रहित मेघ और कामसे क्या? तपसे रहित मुनि अथवा कुलसे क्या ? नीरस काव्य अथवा नटसे क्या? परवंश राज्य अथवा भोजनसे क्या? निचय (व्यय और व्रतसे रहित) द्रव्य अथवा भव्यसे क्या? निर्दय (दयारहित, क्रूर) धर्म और राजा से क्या! णिक्कण (अन्न और बाणसे रहित) बल और तरकस
६. १: A अणु । २, AP गोसासु । ३. AP हत्थु । ४. A रसथक्कल । ५. परकरीहे णिविण ।
६. K नृरिद्धिहि । ७. K हह । ७. १.A पेमें; Pपेमें। २.Pomits कि ।