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________________ -५०. ५. १४ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित धत्ता-एंव भणेवि कुमार अप्प विणएं भूसिवि ॥ गड एचंतनृवाह उवरि आय आरूसिवि ।।४।। ता पहुणा पणयविमरणासु दिग्णउं गंदणवणु गंदणासु । पइसरहुं ण देतु' कयंतलीलु तेमॉरिस सुहिउजाणवालु । संग्राममहोवहिभीममयर आयण्णिवि पडियाइयउ इयरु । दवाहरधु रविणेत्तु भासइ आरूसिवि जइणिपुत्तु । अईसंधिवि महुं चणु लइ जेंव थिरु एंवहिं भायर थाहि तेंव। वीसासिवि किं हम्मद पसुत्त किं पित्तिएण वसिर अजुत्तु । लक्खणहि सूगु भयभावडिउ तं पेच्छिवि दुडु कविष्टि चहिउ । माहिवलयविसट्टणतडयतु मर्जतहिं मूलहिं कउयडंत । विवरंतसप्पचोंभलललंतु उडुतहिं पक्विहिं चलवलंतु। उत्तुंगु अहंगु सुदुपिणरिक्खु उम्मूलिड रिजणा समलं रक्खु । अच्छोडा किर महिवोदि जाव णासंतु दिट्ठ पडिवम्खु ताव । भडु पवणगमणु मग्गाणुलग्गु । धरणासइ पलपसरियकरग्गु । पत्ता-पुणरवि दुग्गु भणेवि आसंधिवि थिउ वरिच।। तेण मुट्ठिधारण खंमु सिलामउ चूरिड ॥५॥ पत्ता-कुमार इस प्रकार कहकर और अपनेको विनयसे भूषित कर, जबतक सीमान्त राजाओंपर कुद्ध होकर गया ।।४।। nnnnnnamoryamnnarnniwww तबतक राजाने प्रणयका नाश करने वाले अपने पुत्रको नन्दनवन दे दिया। नन्दनवन में प्रवेश नहीं देनेषाले तथा यमके समान लीलाबाले सुधी उद्यानपालको उसने मार डाला । (इतने में) संग्रामरूपी समुद्रका भयंकर मगर दूसरा (विश्वनन्दी) यह सुनकर वापस आ गया। अपने आधे ओठ चबाता हुआ लाल-लाल आँखोंवाले जैनी पुत्र (विश्वनन्दो) क्रोधमें आकर कहता है कि जिस प्रकार कपट करके तुमने मेरा वन ले लिया है, है भाई, वैसे ही तुम इस समय स्थिर हो जाओ। विश्वास देकर क्या सोते हुए भादमीको मारना चाहिए, चाचाने यह अनुचित काम कैसे किया ? लहमणाके पुत्रको भयके भावसे कम्पित देखकर वह दुष्ट कपित्य वृक्षपर चढ़ गया। धरतीवलयके धस्त होनेसे तड़तड़ करता हुआ, टूटती हुई शाखाओंसे कड़कड़ करता हुआ, बिलोंके भीतरके साँपोंको चोभल (१) (केंचुल ) से विलसित, उड़ते हुए पक्षियोंसे चंचल, ऊंचा अखण्ड और अत्यन्त दुर्दर्शनीय वृक्षको उसने शत्रु सहित उखाड़ दिया ! जबतक वह उसे धरतीपर पछाड़ता है तबतक उसे शत्रु भागता हुआ दिखाई दिया। वह दोर भी पवनगतिसे उसको पकड़ने को आशासे हाथमें फैली हुई चंचल तलवार लिये हुए मार्गमें उसका पीछा किया। पत्ता-फिर भी दुर्ग समझकर, शत्रु उसका ( शिलाका ) सहारा लेकर बैठ गया। उसने मुट्ठीके आषातसे उस शिलातलको चूर-चूर कर दिया ॥५॥ ६. APणवाह । ५.१. AP बैंति । २.ANT मारिज । ३. AP ददाहरोध। ४.A अहिसपिति । ५. A तब्यलंतु। ६. A चोभल । ७. A उत्तंग।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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