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________________ १८६ महापुराण [५०, १.७जववालिणि मोहिमगि पगसालिणिवडियविहंगि। सरिसरवरजलकल्लोलमालि सयदलणिलीणभसलउलणीलि । वसुमइमहिलासोहाणिदेसि कयुदुग्गहणिग्गष्ठि मगहदेसि । रायगिहणयरि पह विस्समूह तहु लहुयस भाइ विसाहभइ । पढमहु जइयो मृगणयण भज्ज बीयह लक्खण गामें मणोज्जे, पदरमियइ जइणिइ विस्सणं दि जणियच लक्खणा विसाइणंदि । सुय जाया बेणि वि गवजुवाण अच्छंति जाम सुहं मुंजमाण । ता राएं ससियरधवलदेहु गयणयलि पलोइसे सरयमेहु । घता-णं खलमित्तसणे सो सहसत्ति विलीण ॥ ___ उगु संसारु भर्णतु घिति चचकिउ राण ।।१।। १५ जपा पहु जिणगुण संभरंतु सत्तंगरजसिरि परिहरंतु । जिहे णहर पवेणे एहु मेह णासेसह तिह कालेण देहु । होसंति सिविल संधिपएस होसंवि ईसहिमवण्ण केस । होसंति पयण मुहिरूवभंत होसंति इस्थ णित्थामवंत । ५ होसति सुणिव्यवसाय पाय मुहकुहरहु जिम्गेसइ ण वाय । (कृषक बालिका ) के शब्दसे हरिण मुग्ध है, जिसमें नवगन्धसे युक्त धान्योंपर पक्षी गिर रहे हैं, जो नदियों और सरोवरोंकी लहरोसे युक्त है, जो कमलोंमें व्याप्त भ्रमरकुलसे श्याम है, जो वसुमतीरूपी महिलाको शोभाका घर है, तथा जो दुष्टोंका निग्रह करनेवाला है, ऐसे मगध देशको राजगृह नगरीमें राजा विश्वभूति और उसका छोटा भाई विशाखभूति हैं। पहले को कमलनयनी जेनी पत्नी थी । दूसरे को लक्ष्मणा नामकी सुन्दर ली थी। पतिके द्वारा रमण की गयी पहली जैनो पत्नीने विश्वनन्दोको जन्म दिया, जबकि दूसरी लक्ष्मणाने विशाखनन्दीको। दोनोंके पुत्र नवयुवक हो गये । वे सुखपूर्वक भोग करते हुए रह रहे थे कि राजाने आकाशतलमें चन्द्रमाके समान सफेद शरीर शरद् मेघ देखा। पत्ता-वह शीघ्न ही इस प्रकार विलीन हो गया, मानो खलजनका स्नेह हो, इस संसारको आग लगे-यह कहता हुआ राजा अपने मन में नौंक गया ॥शा २ जिन भगवान्के गुणोंका स्मरण करता हुआ और सप्तांग राज्यश्रीका परिहार करता हुआ वह कहता है कि "जिस प्रकार पवनसे यह मेघ नष्ट हो गया, उसी प्रकार समयके साथ यह शरीर नाशको प्राप्त होगा। जोड़ोंके प्रदेश ढोले हो जायेंगे और बाल हंस तथा हिमकी तरह सफेद हो जायेंगे। नेत्र सुहृदोंके रूपको देखने में भ्रान्ति करेंगे। हाथ शक्तिसे रहित हो जायेंगे। पैर व्यवसायसे रहित होंगे। मुखरूपी कुहरसे वाणी नहीं निकलेगी। हे भाई, तुम राज करो, मैंने (यह) तुम्हें ६. A भसलोलिणीलिं । ७, AP मिगणयग। ८. P भज्जा । ९. P मणोजा। १०. A संचियषबलदेह। ११. A पकोयज । १२. P सिणेहु । १३, A वित्त चमक्किड। २.१.AP जिम । २. P पमणे । ३. A सिथिलि | ४. A णिगेस।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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