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संधि ५०
तहि सेयंसह तिथि देढमुयबलदपिट्ठहं ।। णिसुणहि सेणियराय रणु हयकंठतिविट्ठहं ॥ ध्रुवकं ॥
इह जंयूदीवि घरभरहखेत्ति मयमत्तमाहिसजुज्झवियमदि गोउलपयधाराधायपहिब पिच्चंतधण्णसंछण्णसीमि
चवलालिचंदणामोयवति । गजंतगामगोवालसहि। मणियमथियथद्धदहिह।। णिक णियडणियडसंकिणगामि |
सन्धि ५० "हे श्रेणिकराज, तुम श्री श्रेयांसके तीर्थकालमें अपने दृढ़ बाहुबलसे गर्योले अश्वग्रोव और त्रिपृष्ठका युद्ध सुनो।"
जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें मगध देश है को चंचल भ्रमरोंके समान चन्दनवृक्षोंके आमोदसे युक्त है, जो मदमत्त भैंसोंके युद्धसे विदित है, जो गरजते हुए ग्रामगोपालोंके शब्दों से युक्त है, जहाँ गोकुलोंकी दुग्धधारासे पथिकजन सन्तुष्ट हैं, जिसमें मथानीसे गाढ़ा दही मथा जा रहा है, जिसकी सीमाएं पके हुए धान्योंसे आच्छादित हैं, जहां गांव पास-पास बसे हुए हैं, जिसमें जो रखानेवाली
Mss. A and have the following stanza at the beginning of this Samdhi:
भास्वानेककलावतोऽस्य च भवेद्यनाम तम्मङ्गलं सर्वस्यापि गुरुर्बुधः कविरयं चक्रे अयं व क्रमः। राहः केतुरये द्विषामिति दक्षत्साम्यं ग्रहाणां प्रभुः
संप्रत्योदयमातनोति भरतः सर्वस्य तेजोषिकः ॥ १।। K does not give it anywhere in addition, Phas also सया सन्तोसो भूसणं सुखसोलं etc. which in A is found at the begioning of IL for which see page 130. In addition, P has जगं रम्म हम्म दीवओ चन्दबिम्ब for which see page 165 of Vol. I. In addition, P has the following stanza :
दीनानाथपन सदाबहजन प्रोत्फुरलवल्लीवमं माभ्याखेटपुरं पुरंपरपुरीलीलाहरं सुन्दरम् । पारानाथनरेन्द्रकोपशिखिना दग्धं विदधप्रिय
क्वेदानी बसति करिष्यति पुनः षीपुष्पदन्तः कविः ।।१।। A gives this stanza at the beginning of LII. K does not give it anywhere १.१. AP विठभूय । २. AP चललकलि । ३. AP°जुझणविमहि । ४. AP मंचागामंपिह बहदहिए।
५. A fणयलणियल।