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________________ १८४ ५ १० roga कम्म पडलपरिमुक देहपूज किये दसरायणेसें कलु विरसंतिहिं भाभेरिहि सिरंभ तिलोत्तमणारिहिं रुणायणिशंकारहि वफाई व वित्तई दिई दीवधू अपमाणई दीव धूमु जो गयणि व लग्गउ जिर्ण सेव पंकु पणासइ विषिणिसिद्धिं भचिअणुराएं महापुराण अट्टम धरणिवी खणि दुकउ । कर पंजलि ल्लियस यवतें । गच्चतिहिं गोरिहि गंधारिहि । सुरकामणिहिं विणवियारहिं । प्रणवं तहिं जलकुमारहिं । सीयलचंदजण व सितई । नीलीक अमरंगण जाणेहिं । ाई हुया सकलं विणिगगड | सध्वजं भासइ माय सरासर । जंतें जंपिष्ठ सुरसंघाएं । धत्ता-भरहि पण उद्धरिव विणिवा रेष्पिणु कुसमयकम् ॥ सेयं बहु सेयर कुंदपुष्पदंत जणधम्मु || १४ || [ ४९. १४. ३ महापुराणे विमिहारिपुकारे महाकपुष्यं तदिव महामन्वभरखाणुभक्जिए मद्दा संणिवाणगमर्ण णाम एक: पण्णासमो परिच्छेओ समती ॥ ९॥ १० ॥ सेयंस जिवरियं समयं ॥ कम्पटलसे परिमुक्त वह निवृत्त हो गये। एक क्षण में आठवीं भूमि पर जा पहुंचे। अपने हाथोसे जिसने शतपत्र फेंके हैं, ऐसे इन्द्रने उनकी देह पूजा की। सरस बजते हुए, भंभा भेरी आदि वाद्यों के साथ, नाचती हुई गोरी गांधारी उर्वशी रंभा तिलोत्तमा आदि स्त्रियोंको विकार उत्पन्न करनेवाली कामिनियों, तुम्बर और नारद को ध्वनियोंको शंकारोंके साथ, वहाँ प्रणाम करते हुए अग्निकुमार देवोंके द्वारा पुष्पांजलियाँ डाली गयीं और शोतल चन्दन से सिक्त, आकाश के प्रांगण में स्थित यानको नीला बनानेवाली दीप-धूप दो गयी। दीपका धुंआ आकाश में इस प्रकार लग गया, जैसा आका कलंक निकल गया हो। माता सरस्वतो ठोक ही कहती हैं कि जिनवरके शरीरको सेवा करनेसे पंक नष्ट हो जाता है, भक्ति के अनुरागसे मनुष्यकी सिद्धिको प्रणाम कर जाते हुए सुर उक्त बात कही। पत्ता -- खोटे सिद्धान्त और आचरणका निवारण कर, भरत क्षेत्रमें नष्टप्राय बहुश्रेयस्कर जिनधर्मका कुन्द पुष्पके ममान दाँतोंवाले श्रेयांस जिनने उद्वार किया ||१४| इस प्रकार त्रसठ महापुरुषोंके गुणाकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामन्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का श्रेयांस निर्वा-गमन नामक उनचास परिच्छेद समाप्त हुआ ॥४५॥ १४. १. A २. P किय। ३. A उभसरंभ । ४ AP सहि संधुक्किय । ५. AP omit this line and the following ६. AP add after this : चित्त चंदणदणकट्टई जलियां गाइह अंगई दिट्टई । ७. AP गोल घूम गयणमणि लग्ट ८ A P जिणुं षणु । ९. A णिसिहि । १०. AP omit this line I
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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