________________
१०
महापुराण
[४९.११.९दुइ वरिसई विहरेपिणु महियलि पुठिवल्लइ वणि तुबुरुतस्तलि । माइड मासह णिच्चंदइ दिणि छेइल्लइ सवणइ मयलंछणि | अनरण्हइ तिरत्तसजुत्तहु
अचलियपत्तलपविलणेत्तहु । धत्ता-संभूय केवलु तछ चिमलु णाणु सेण तेलोक्कु वि दिव॥
पत्त व सामर अमरवइ जिणु थुणंतु महु भावद घि8 ॥११॥
१२
तुहुँ जि देउ तुह णवइ पुरंदर तुहुँ थिरु सुह पीढुल्लर मंदरु। तुहूं तबुग्गु तुह बीहइ दिणयरु कंतिवंतु तुहूं तुइ ससि किंकरु । तुहें गहीर वरुणेणाणदित
तुहं अणिहणणि हि घणएं बंदिछ। तुहुँ रयतरुसिहि सिहिणा सेविड । तुहं जि मंति मंतीसहि भाविस । तुह पायग्गहि वाउ विलगड तो- वि ण तुहु पहु वाएं भग्गन । तुहं जमपासबसेण ण बदल जमु तुह सेवाविहिपडिबद्ध। तुहूं जि कालु कालहु कालुत्तर तुहं विवाह वाइहिं दिण्णुत्तरु । सन्वु वि जाणसि पेच्छसि जेण जि तुहुँ जि सम्वु सवाहिउ तेण जि | पत्ता-अङ्कपाडिहेरयसहिउ अट्टमहाधयतिसमेत ॥
समवसरणि थिन परमजिशु कह समयपयस्थहं भेउ ॥१२॥ नन्द राजाने उन्हें आते हुए देखा, उसने उन्हें विशुद्ध आहार दिया, दो वर्ष तक धरतीपर विहार कर पूर्वोक्त वनमें तुम्बर वृक्षके नीचे माघ कृष्ण अमावास्याके दिन, अपराह्य में श्रवण नक्षत्र में तीन रातके उपवाससे युक्त एवं अविचलित पलक विशाल नेत्रवाले।
पत्ता--उन्हें विमल केवलज्ञान उत्पन्न हो गया ! उससे उन्होंने तीनों लोकोंको देख लिया। इन्द्र देवों सहित आया। जिनको स्तुति करता हुआ वह ढीठ मुझे (कवि को) अच्छा लगता है ॥११॥
१२
देव तुम्ही हो, तुम्हें इन्द्र नमस्कार करता है, तुम स्थिर हो, तुम्हारा पीठ मन्दराचल है। तुम तपसे उग्र हो, तुमसे दिनकर डरता है, तुम कान्तिवान् हो, चन्द्रमा तुम्हारा किंकर है । वरुणके द्वारा आनन्दित तुम वरुण हो, तुम पापरूपी वृक्षोंके लिए अग्नि और अग्निके द्वारा सेवित हो, तुम्ही बृहस्पति हो, और वृहस्पतियोंके द्वारा भावित हो, वायु तुम्हारे पैरोंसे लगी हुई है, हे देव तब भी सुम वाए (वायु और वाद) से भग्न नहीं होते; तुम यमरूपी पाशसे आबद्ध नहीं हो, यम तुम्हारो सेवाविधिके लिए प्रतिबद्ध है, तुम्ही कालके लिए काल हो और कालसे श्रेष्ठ हो, वादियों के लिए उत्तर देनेवाले तुम विवादी हो, जिस कारणसे तुम सबको जानते और देखते हो, इसी कारण तुम सब, और सबसे अधिक हो।
पत्ता-आठ प्रातिहार्योसे युक्त आठ महाध्वजपंक्तियोंसे सहित, समवसरणमें स्थित परम जिन समस्त पदार्थोके भेदोंका कथन करते हैं ॥१२॥
-
-
---
४. A omits तेण १५ १२. १. P मंदिरु । २. A तवगु; P सवंगू । ३. AP मंतु । ४. AP पढ़ तुहूं । ५. A समत्यु ।