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________________ -४९. ११.८] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पुणु कोइलु कलसः गजा णं वसंतपशु पउहाट बजइ । रुणुरुगंतु अप्पाणु ण चेयइ महुयरु महु पिएंवि णं गायइ । ता परमेसरु मणि मीमंसह अम्हार वणु अण्णु जि दीसइ । काले कइयवं अंकुरियर पल्लवियर कुसुमोलिहिं भरियउं। फलितं फलावलीहिं णं पणवह रही सयलहु लोयह परिणइ । परिणमंतु जगु णिविसु ण थक्का परिणामहु जडु जीउ ण चुकइ । धत्ता-जगु परिणामें दूसियत णिप्परिणाम सिद्ध परमेट्ठी ।। हो हो अथिरेणेप्प महुँ णिरर्चल सेत्थु णिभिवि विट्ठी ॥१०॥ ता संपत तेत्थु सुरवरगुरु तेहिं तुरिउ पडिबोहित जगगुरु। सो आहेडलु तं सुरमंडलु तं अच्छर उलु मणिमयकुंडलु । आयउ पुणु वि पहवणु किउं देवहु णिष्ट्रिय चरियावरणविलेबहु । विमलें सिवियाजाण जिगर पाहु मनोहर पंदणवणु गर । फगुणि कसणि एयारसिदियहइ । दियहादिवि अवरासासंगइ । सवणरिक्खि उपसमियकसायष्ठ भूबा मुकभूइभूभाय । उपवासढुवेण रिसि जायल सिद्धत्थर पुरु भिक्खहि आयउ । गंदाणरिंदें एंतु पडिलिट सुहर्षितु तह तेण पयच्छिउ। किया था। फिर कोयल कलकल शब्दमें गरज उठती है मानो वसन्त राजा अपना नगाड़ा बजा रहे हैं। भ्रमर गुनगुन करता हुआ, स्वयं नहीं चेतता, मानो वह मधु पीकर गा रहा है, तब परमेश्वर अपने मनमें विचार करते हैं कि हमारा वन तो आज दूसरा दिखाई दे रहा है। यह कालसे कंटकित और अंकुरित पल्लवित और पुष्पपंक्तियों से भरा हुआ है और फलकी कतारोंसे लदा हुमा मानो झुकता है, यही समस्त लोकको परिणति है। परिणमन करता हुआ यह विश्व एक क्षणके लिए नहीं सकता और परिणामसे यह जड़ जीव एक पलके लिए नहीं चूकता। ___पत्ता-यह विश्व परिणामसे दूषित हैं केवल सिद्ध परमेष्ठो परिणामसे रहित हैं । यह अस्थिरता रहे रहे, मैं अपनी निश्चल दृष्टिको वहीं अवरुद्ध करूंगा ।।१०|| PMHANIYAAN ११ सब इतने लोकान्तिक देव यहाँ आ गये। उन्होंने तुरन्त वहाँ विश्वगुरुको सम्बोधित किया। वही इन्द्र, वह पुरसमूह, वह मणिमय कुण्डलवाला अप्सरा कुल, वहाँ आया। चारित्रावरण कर्मके अवलेपको नष्ट करनेवाले देवका फिर अभिषेक किया गया। पवित्र शिविकायान में बैठकर देव निकले और स्वामी सुन्दर नन्दन वनमें पहुँचे । फागुन माहके कृष्णपक्षकी एकादशोके दिन, सूर्यके पश्चिम दिशामें प्रवेश करनेपर श्रवण नक्षत्र में, जो ऐश्वर्य और धरतीके भावसे मुक्त हैं, ऐसे वह उपशाम्तकषाय राजा दो उपवासोंके साथ मुनि हो गये। यह सिद्धार्थ नगरमें आहारके लिये गये । ३. AP पिए । ४. P कंटइयउ कुरियन । ५, A परिणवतु । ६. AP परमेदिहि । ७. A होही । ८.A णिच्चल तेसु णिभिवि विट्टिहि; P णिचलतेसु णिसभिवि दिट्टिहि । ११. १. A°वरण । २. AP विमलि । ३. A भूयई।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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