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________________ महापुराण . [ ४९,९. ४जे कलसर ते किर वम्महसर वम्महारि विवियणरामर । वम्महसरवरेहि जणु दारिउ जणवएषा हियवइ जिणु धारि। जिणु सिसु मयणहु अज्जु वि संकर तेण जि रइ थणजुयलु ण ढंकह । करइ कामु धणुगुणटंकारउ पसरइ अच्छरउलहं वियार । बहुएं से यंसेण णिच सयमद्देण सेयंसु पत्तद। आणिवि पयरु समप्पिउ मायहि तणयालोयणवियसियछायहि । पणवेप्पिणु दुनियघणपवणड्ड गयठ पुलोमपिसुणु णियभवणहु। काले जतं वत्थुपमाण वडिउ पुरि तइलोकहु राणउ । पत्ता-मच्छवि हि भडारहु जं दिट्ठउ तं जेय रहंति ।। तासु असीइसरासणाई गणहर तणुपरिमाणु फहति ॥९|| एकवीसलक्खई बालतें घल्लियाई वरिसह खेलतें । पुणु पुजिउ पोलोमीकंत किउ रज्जाहिसेउ गुणवंते । रज्जु करंतहु कामरसद्द दोचालीस लक्ख गलिय। एइस अवसर जायस जड्याहुं गाहें कीलोषणि तहि तझ्यहुँ । दिउ तंबिरपल्लवु चूयउ मयणहुयासहु बीयउ हूयउ। ५ सो णं जालहिं जलइ णिरारित विरहीयणु ते ताविउ मारिष्ट । भी कलस्वरमें निर्घोष कर रहे हैं, उनके जो सुन्दर स्वर थे वे मानो कामदेवके तीर थे, जो मर्मका भेदन करनेवाले और मनुष्य और देवोंको विधारित करनेवाले थे। जब मामदेवके तीरोंने लोगोंको विदीर्ण कर दिया तो उन्होंने जिनको अपने हृदयमें धारण कर लिया। जिनदेव बालक हैं, तब भी वामदेव आज ही शंकित है, इसी कारण रति अपने स्तनयुगलको नहीं ढकतो। कामदेव अपने धनुषकी डोरीकी टंकार करता है, उससे अप्सराकुल में विकार फैल जाता है। अनेक कल्याणोंसे नियुक्त प्रभुको इन्द्रने श्रेयांस कहा । नगर में लाकर उसने, उन्हें पुत्रको देखने से जिनकी कान्ति विकसित हो गयी है, ऐसी मां को सौंप दिया। पापरूपी बादलोंके लिए पवन उनको प्रणाम कर इन्द्र अपने विमानमें चला गया । समय बीतनेपर, उपमानसे रहित त्रिलोकके राजा वह नगरमें बड़े हो गये। घता-आदरणीय उनकी स्वर्णछविको जिसने देखा वह रह नहीं सका। गणधर उनके शरीरका प्रमाण अस्सी धनुष प्रमाण बताते हैं ।।९।। खेल-खेलमें उनकी बाल्यावस्थाको इक्कीस लाख वर्ष आयु बीत गयो। फिर देवेन्द्रने उनको वन्दना को और गुणवान् उसने उनका राज्याभिषेक किया । राज्य करते हुए, कामरससे आई उनके बयालीस लाख वर्ष बीत गये। जब उनका यह अवसर आया तो स्वामीने क्रीडावनमें लाल-लाल पल्लवोंका आम्रवृक्ष इस प्रकार देखा, मानो वह कामरूपी अग्निका बीज हो। वह मानो ज्वालाओंसे जल रहा था, इसी कारण उसने विरहीजनको सन्तप्त ओर आहत २. A किल से; P ते किल। 1. A°णिवियः। ४. पुलोमविमुण। ५, AP वत्युवमाणठ; Tवत्यु अम्मोणउ । ६. Pतंतें अरहते । ७. P असीसरासणई। ८. Pकहते। १०. १. AP प्रणवते । २. AP पाहे कोलंत वणि तझ्यहु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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