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महायुमण
[ ४९. ६.९सह सररासि चारुसीहासणु देवालउ फणिभवणु फणीसणु । १. माणिकोहु मोहमालाल
सिहि णहयलि जलंतु चलजालव । पत्ता-पद णिहालिवि चंदमुहि चंदकति सुहदसणपति ॥
जाइवि भासइ भूवइहि सुंदरि सुविहाणइ विहसति ||६||
महिवाइ मेहघोसु णिचप्फलु कहइ महासइहि सिविणयफलु । जसु आणइ हरि अच्छा गम्छा जो सयरायरू लोड णियच्छा। जो परु अप्पडं परहु पयास इ जासु दोसु तिलभेत्तु ण दीसइ । सासयसोकवसरोरुहछप्पड सो अरहंतु संतु परमप्पड । तेरइ गन्मइ अभाउ होस ता रोमंचिय णचिय मा सह। वुटु कुवेरु देवु णवणिहिहरु जा छम्मास तां चामीयरु । कंतिकित्तिसिरिहि रिदिहिबुद्धिउ । देविउ देविहि कियैतणुसुद्धि । आयउ जायउ जणउच्छाहल सग्गऊसचुउ अश्चयणाहला चित्तसुरासुरपंकयविदिहि
जेटहु मासह किण्हहि छट्रिहि । संवणि सुरिक्खह पच्छिमरतिहि । घिउ जयरंतरि पत्थिवपत्तिहि ।
जक्वणिहितइ दुक्खणिवारइ पुणु णवमांस सित्त वसुहारइ। सुन्दर सिंहासन, देवलोक, नागराजका नागलोक, मयूखमालासे युक्त माणिक्य-समूह, चंचल ज्वालामओं वाली आकाशमें जलती हुई आग।
पत्ता-चन्द्रमुखी और चन्द्रमाके समान कान्तिवाली और शुभ दन्तपक्तिवाली वह यह देखकर, दूसरे दिन सबेरे जाकर हंसनी हुई उन्हें राजाको बताती है ॥६॥
मेधके समान ध्वनिवाले निश्चल राजा उस महासतीको स्वप्नोंका फल बताते हैं कि जिसकी आज्ञासे इन्द्र बैठता और चलता है, जो सचराचर लोक देख लेते हैं, श्रेष्ठ जो स्वपरका प्रकाशन करते हैं, जिसके तिलके बराबर भी दोष दिखाई नहीं देता, जो शाश्वत मोक्षरूपो सरोवरके भ्रमर है वह अरहंत सन्त परमेश्वर तुम्हारे गर्भसे बालक होंगे। तब वह सती रोमांचित होकर नाच उठी । जब छह माह रह गये, तो नवनिधियोंको धारण करनेवाले कुबेरने स्वर्णवृष्टि की। देवीकी शरीर-शुद्धि करनेवाली कान्ति, कोति, श्री, ह्री, धुति और बुद्धि आदि देवियाँ आयीं। लोगोंमें उत्साह फैल गया । अच्युत स्वगंके स्वामी वह स्वर्गसे च्युत हए। ज्येष्ठमाहके कृष्णपक्षमें जिसने सुरासुरोंमें कमलवृष्टि की है ऐसो छठीके दिन, श्रवण नक्षत्रमें रात्रिके अन्तिम प्रहरमें राजाको पत्नीके उदरमें वे स्थित हो गये । यक्षके द्वारा की गयी दुःखका निवारण करने वाली धनकी धाराने फिर नो माह तक सिंचन किया।
११. A सिंहासणु । १२. A मोह मालालउ । ७. १. A फुबेरदेउ । २. A जाम । ३. AP कय । ४ AP जणि उच्छाहल । ५. A कण्मदिहि । ६. A
सवणसुरिकखाई । ७. APावमासु ।