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________________ १७७ -४९. ६.८] महाकषि पुष्पदन्त विरचित आइदेवकुलसंवबजायज विठु णाम राण: विक्खायठ । पंदादेवि तासु घरसामिणि कामसुइंकरि णं सुरकामिणि । तगुरु तेओहामियदिणयरु एचई दोहं वि होसइ जिणवर । ताहं सुरिई तुहूं करि भण्डारउं रयणफुरंतु णयह चबदार। धणएं पुरुं पविणिम्मिई सेहर्ड मणुयहि वण्णहुँ जाइ ण जेहई । धत्ता-ता णजइ दिणु णिच जहिं जा सरवरि कमलई वियसति ।। वरमणिकिरणहि सोंतडिय उम्गय रवियर णड दीसंति ।।५।। तहिं मयणाला 'सिरिअइसनराइ पच्लिमरयणिहि णिइंधेयइ । पुण्णचंदसोहियमुहयंदइ सिविणपति अवलोइय णंदद। अविरयगलियदाणधारालउ भमियसिलिम्मुद्दोलिसोंडाल। वालहिसण्हाककुखुरमणहरु सवरहेड रुइरंजियससहरु । कृडिलणहरु भइरवरंजेणरबु गिरिगुहणीहरंतु कंठीरवु । कण्णतालहृयमहुलिहविदेहि सिरि सरि सिंचिन्नति करिदहिं । मालाजुयलु भिंगपियकेसर मा मिसिम णु मासुरु णेसर। कलमजुयलु णवक्रमलु सकोमलु मीणमिहुणु जलकीलाचंधलु । धन जन कण और गोधन और गुणोंसे प्रचुर सिंहपुरमें, आदिदेवको कुल परम्परामें उत्पन्न विष्णु नामका विख्यात राजा है। उसकी गृहस्वामिनो नन्दादेवी है । काममें शुभंकर वह सुरकामिनीकी तरह है। अपने तेजसे दिनकरको तिरस्कृत करनेवाले जिनवर इन दोनोंके पुत्र होंगे । इसलिए तुम शीन रत्नोंसे चमकता हुआ चारतारों वाला नगर बनाओ। कुबेरने इस प्रकारके नगरकी रचना की कि जिसका मनुष्यों के द्वारा वर्णन नहीं किया जा सकता है। __ पत्ता--जहाँ सरोवरमें नित्य ही कमल खिलते हैं इसलिए दिन जान नहीं पड़ता, श्रेष्ठ मणिकिरणोंसे मिश्रित ऊगी हुई भी सूर्यकिरणें दिखायी नहीं देतीं ||५|| वहाँ श्री से अतिशय भरपूर रात्रिके अन्तिम प्रहरमें शयनतलपर नींदमें सोयी हुई, पूर्णचन्द्र के. समान शोभित मुखचन्द्रवाती नंदादेवी स्वप्नमाला देखती है। अविरत झरती हुई मदधारासे युक्त और भ्रमण करती हुई भ्रमरपंक्तिवाला महागज, पूँछ गलकम्बल ककुद और खुरोंसे सुन्दर और कान्तिसे चन्द्रमाको रंजित करनेवाला वृषभ, कुटिल नख और भयंकर गर्जन शब्दवाला पहाड़की गुफासे निकलता हमा सिंह, अपने कानों के तालोंसे मधुकर समूहको आहत करते हुए गजेन्द्रों द्वारा सिर पर अभिषिक श्री भ्रमर और पीली केशरसे युक्त मालायुगल, लक्ष्मी ? और रात्रिका मण्डन (चन्द्रमा), भास्वर सूर्य, कोमल नवकमलोंसे सहित कलशयुगल, जलक्रीड़ासे चंचल मीनयुगल, सरोवर, समुद्र, ३. AP संतर जामउ । ४. A पुरु दिणिम्मिउ । ५. A सरवरकमलई । ६.१, Aणिरु भइसक्ष्य। २.AP णिहंधा। ३.A सिविणयतह: T त पतिः । ४. AP अविरल । ५.A भइरवर्भ जगरज । ६. A वैदहि । ७. A मिगु पिय । ८. A "मंडल । ९. AP कलसजमलु । १०. A मी गजुयल । २३
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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