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४१. १२.३
महाकवि पुष्पवन्त विरचित
गिद्धम्म मोसाहारियाई दुहुं देव ण होसि सुसामि आई महयाल गाइ वि जासु वषक्ष बहि सुदधावर तुहुं जि सरणु बलदेव अग्गइ देहि तिणि जे परमविराय बसि रणि हु सहखं पुणु चउरो साई असई साहिलोयणाएं ते चोईस "विकिरियागुणीहि
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रसलोलहं णियपरवैरियाहूं । अजिणु व अजिण चुक ताई । हो हो किं वेएं तेण मध्झ । तुइ पायमूलि महुं होउ मरणु । हु गणहर हर सहस दोणि ।
राहु मुणिसिक्खुव लक्ख दोणि । सिक्खति सत्थु गुरुसम्मयाई । अट्ठारहर्स इस णिरंजणाई | सहस मणपज्जब मुणीहि ।
पत्ता- पिंढीदुमु चमर दिव्वणि कुसुमवरिषु सियछत्तई ॥ भामंडल दुंदुहि सुरवरहिं जिणचिधाई पिउतई ॥ ११ ॥
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भयसहसई छेसय विवाहबाह
सहास तिण्ण लक्ख सावयहं लक्ख गुत्ती समाण
छलजकुलघाइयां । संजमधारिणिहिं वर्हति दिक्ख । ते अणुवणारिहिं वयपमाण ।
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हैं देव, जो धर्महोन, मांसाहारी, रसलोलुप स्वपरके शत्रु हैं, आप उनके स्वामी नहीं हैं । जिन भगवान्से रहित जिन्होंने मृगचर्म नहीं छोड़ा, उनके आप स्वामी नहीं हैं । यज्ञमें जिसके लिए गाय वध्य है, हो-हो ! उस वेदसे मुझे क्या करना हे सुदयावर, इस समय तुम्हीं मेरीशरण हो, तुम्हारे चरणोंके मूलमें मेरो मृत्यु हो । उनके तेरानबे गणधर थे, दो हजार पूर्वधारी थे, जो परम विरक्त और वनमें निवास करते थे, ऐसे उनके दो लाख चार सौ शिक्षक मुनि थे जो वसम्मत शास्त्रोंकी शिक्षा देते थे। आठ हजार अवधिज्ञानी थे । निर्विकार केवलज्ञानी ( माठ हजार सहित अट्ठारह हजार अर्थात् १० हजार) दस हजार, विक्रिया ऋद्धिके धारक मुनि चौदह हजार, और मन:पर्यय-ज्ञानी आठ हजार थे ।
११. १. P मंसाहारि २. P परबेरियाई । ३ AP सुदयावह । सुयबर down to मुणि in 66; K writes it in marg | after this; चरसहस ताह पुण्यंधराई । ७. A दोसहस चव । १०. A रिदुसया सुविविकरिया ।
घत्ता -- अशोक वृक्ष, चामर, दिव्यध्वनि, पुष्पवर्षा, श्वेतछत्र, भामण्डल, दुन्दुभि जिनवर के ये चिह्न देवताओं द्वारा कहे गये हैं || ११ ||
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छल जाति हेतु समूह का खण्डन करनेवाले सात हजार छह सौ वादी मुनि थे। तीन लाख अस्सी हजार संयम को धारण करनेवाली आर्यिकाएं दीक्षाको धारण करती हैं, तीन लाख श्रावक
४ Aomits portion from ५. A बहस । ६. A adds ८. P जाणिीय दहसत ।
९. P ते
१२. १ A सासु; K तासु but corrcats it to इस । २. P जाउ । ३. A बदरासी सहसई । ४. P
व