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________________ महापुराण [४६.१०.३कडिहि रवाला किंफिणिमाला झणझणिया पासे रामा मुद्धा सामा पणथणिया। भईरावाणं मिडं खाणं मृगमार्स वाढाचंडं कुद्धं तोड जणतासं ।। ५ पेयावासो रक्खसभीसो णियठाणं चित्तविचित्तं रम्म पम परिहाणं । सो देसी व बाण सामााण: झियसुत्तो हिंसाजुसो रयखाणी । जे संरगायणवायणणवणलद्धरसा पामच्छीण रत्ता मत्ता कामवसा । कट्ठा दुट्ठा णिहाणट्ठा णायचुया राइमिच्छेणे महतुच्छेण ते वि थुया । संसरमाणो 'भवममभग्गो भुत्तदुहो भो चंदप्पह वरिसियसुप्पह तुह विमुहो। पई ण मुणतो पई ण धुर्णतो कयमाओ आसो मेसो महिसो हंसोई जाओ। छिंदण भिवण कप्पण पटलण घयतलणं पत्तो तिरिए धुणरवि परए णिलणं । परघरवास परक्यगासं कंखंतो णीरसपिंडं तिलखलखो भक्खंतो। परलच्छीओ धवलच्छीओ सलहतो अलहतो णियहंतो दीणो ई होंतो । कटलषियके जोइणिचक्के रेइधरणी लोयणगामिय हा मई रमिया परघरिणी । १५ घत्ता-मई "विप्पे होइवि आसि भवि पसु मारिवि पलु मुत्तरं ।। ___ गंडया हैइ हरिणयहु अणु देव पविसु पवुत्तजं ॥१०॥ अस्थियोंसे युक्त हैं, जिनके हाथमें त्रिशूल है, खण्डित कपाल और तलवार है, कमरमें शब्दयुक्छ झनझन करती हुई किकिणीमाला है, पासमें सघन स्तनों को मुग्धा श्यामा है, मदिरापान है, पशुमांसका मीठा खाना है, जो दाढ़ोंसे प्रचण्ड, क्रुद्ध भूखवाले और जनोंको प्रस्त करनेवाले हैं, राक्षसोंसे भयंकर मरघट जिनका अपना निवास है। चित्र-विचित्र सुन्दर धर्म जिनका परिषान है। जिनका इस प्रकारका रूप है, ऐसे देवके ज्ञानमें धर्मको हानि है । शास्त्रविहीन, हिंसासे सहित वह पापकी खान हैं । जो स्वरोंके गाने बजाने और नाचनेमें रस प्राप्त करते हैं और कामके वशीभूत होकर सुन्दरियोंमें रत और मत्त हैं, जो कठोर दुष्ट, निष्ठासे भ्रष्ट न्यायसे च्युत हैं, बुद्धिहीन मिथ्यादृष्टिके द्वारा उनकी भी स्तुति की जाती है। संसारमें परिभ्रमण करनेवाला भवभ्रमणसे मग्न, दुःखको भोगनेवाला वह, सुपथके प्रदर्शक है चन्द्रप्रम, तुमसे विमुख है। वह तुम्हें नहीं मानता है, तुम्हारी स्तुति नहीं करता है, माया करनेवाला वह, में अश्व-मेष-महिष और हंस हुआ हूँ। छेदा जाना, भेदा जाना, काटा जाना, पकाया जाना, धीमें तला जाना (इन्हें) तिर्यचगतिमें प्राप्त करता है, फिर नरकमें वह दला जाता है। दूसरेके परमें निवास, दूसरेका दिया मोजन चाहता हुआ, नोरस आहार तिलखलके खण्डोंको खाता हुआ दूसरेकी षवल आँखोंवाली स्त्रीकी प्रशंसा करता हुआ, नहीं पाकर अपनी हत्या करता हआ में दीन हया है। चार्वाकोंके एक भेद योगिनीचकमें अफसोस है कि मैंने रतिको भूमि देखी और परस्त्रीका रमण किया। घसा-मैंने विप्र होकर, जन्ममें पशु मारकर मांसका भक्षण किया हुआ है। गेंडे की हड्डियों और हरिणोंके चर्मकों हे देव, मैंने पवित्र कहा है ॥१०॥ २. A झणिणिया । ३, A सुद्धा। ४, P मरापाणं! ५. AF मिगमासं । ६. AP omit हाणी । ७. AP रयखाणं । ८. AP सुरगायण । ९. AP सृट्ठा । १०, A णिहाणट्ठा । ११. AP भवभय । १२. Aसुहपम; सुहपह । १३, AP हंसो महिसो। १४. P कपपरमासं । १५. A खडसं । १६. A हरिणी । १७. विष्पह होइवि । १८. AP हड्ड हरिणहु अयणु ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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