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________________ १३६ ५ १० देव देवि णव द्वेष अतिथ ग विहीणु बसुम विहरिवि सेवक पुन्तु मेहु सिह समारुद्देषि नामहं गोत्तरं वैयणिययाई कम्मइयतेय तयारियाई महापुरान इस णिव्वाणि तूराई वज्र्जति थोताई किज्जति बीजाई से अंति चंदई सील traye facia अग पणमंति दीवोई दिज्जति । [ ४६. १२. ४ लोकसूर केवलगभस्थि । अणुवि मासहिं सिंहिं मुणहि झीणु । संबोधिवि मणुसमूह भन्छु + थि जोड मासु परंतु लेवि ! आउट्टिसिरिस लहु कथाई । तिविण वि अंगई ओसारियाई । घत्ता - सियपक्खहु फग्गुणसत्तमिह परमविद्धि रिद्ध ।। बहुरिसिहिं सहुं चंदप्पहु सिद्ध ||१२|| जेहि पिट्ठियम १३ पंचम कल्लाणि । मंगलई गिज्जति । दाणाई दिज्जति । दुरिया विज्र्जति । सुरहियां परिलई । घुसणेण सिप्पति । मोह दिप्पति । थे । अणुव्रतों का पालन करनेवाली नारियाँ (आर्यिकाएँ) पाँच लाख थीं। देवों और देवियोंका अन्त नहीं था । केवलज्ञानरूपी किरणवाले त्रैलोक्य सूर्य जिन चोबीस पूर्वांगसे रहित और भी उनमें तीन माह कम समझो। एक पूर्व तक घरतोपर विहार कर और भव्य मनुष्यसमूहकोसम्बोधित कर सम्मेदशिखरपर आरोहण कर एक माह पर्यन्तका योग लेकर नाम गोत्र वन्दनीय को आधुके समान स्थितिवाला कर, औदारिक-तेजस और कार्मण तीनों शरीरोंको उन्होंने हटा दिया। घत्ता - फागुन माह के शुक्लपक्षको सप्तमोके दिन परम विशुद्ध ज्येष्ठा नक्षत्र में मलको नाश करनेवाले चन्द्रप्रभु अनेक मुनियोंके साथ सिद्ध हो गये ||१२|| १३ स्वामी के पांचवें कल्याण निर्माण होनेपर नगाड़े बजते हैं। मंगल गीत गाये जाते हैं, स्तोत्र रचे जाते हैं, दान दिया जाता है, दीन सुखको प्राप्त हो जाते हैं, दुरित नष्ट हो जाते हैं, शीतल चन्दन और सुरभित परिमल जिनके शरीरपर डाले जाते हैं, केशरसे उसका लेप किया जाता है, अग्नीन्द्र ५. AP देवि । ६. AP चढ़वीसई पुरुषं गई । P अवारियाई । ८. विसिद्धि ९ A विद्विवि । १३. १. A णाणस्स पिवा । २. AP सज्जति । ३. वंदणई । ४. A सुरहीषणई; P सुरहियहं इंधनई । ५. A लोणियहि विप्यंति । ६ AP हिप्पति । ७. A मुणि डुब वहं देति ; P मणिमवई देखि । 4. AP omit दीयोह विज्जति ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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