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महाकवि पुष्पदन्त विरचित सइरिहि सिरिसिरिहि हरिवि रइ कयकलसणास संणासगइ । सवियपि कपि सोहम्मवरि एको हिसुहणिहिआउधरि । सिरिवहि सिरिवेहि विललियचमा सिरिहरु मणहरु जायज अमरु । "एसजु पुज्जु तहु अट्ठगुणु सुहवत्त सत्तकरमवियतणु । विहवाई अदई सहस दुइ वटुंति जति जइ मुत्ति तइ। णीसासु मासु पूरिधि मुयइ भावइ सेवा कार्य जुयइ । घप्ता तहु तहिं पंकयतहु कीलंत? कीलंतहु ॥
आउ पईहु वि पर्यलिस काले को "ण कवलिउ ।।५।।
अवर षि णररविपहवत्ति जाहिं बहुजीषइ बीयई दीवि तहिं । मोरयभीमोरयसंगरहु
इसुकारहु सारहु गिरिवरहु । पुवासह वासइ भारह
सियमाणुमाणुकरभारहइ । गंदतपैगविगविगहिरि
इलतिलइ अलयइ विसयवरि । संपयहि पयहि णिहचु जि पियहि णिदुंगेज्झहि उज्महि पायरियहि ।
णिश्वट्टि लोहिल कूरमई अंजियजउ दुज्जत मणुयम । और शरीरको दण्डित किया । सिंहों सहित श्रीपर्वत शिखरपर रतिका नाश कर, जिसमें कालुष्यका नाश कर दिया गया है, ऐसो संन्यास गति रचकर वह एक सागर आयु और सुखको निषि धारण करनेवाले सौधर्म स्वर्गके श्रीसम्पन्न श्रीप्रभ विमानमें, जिसपर चमर ढोरे जा रहे हैं, ऐसा श्रीधर नामका सुन्दर देव हुआ। उसका आठ गुना पूज्य ऐश्वर्य था। उसका सात हाथोंसे मापा गया शरीर सुखका पात्र था। वैभवसे गोले दो हजार वर्ष जब बीत जाते हैं, तब उसका भोजन होता है, एक माहमें सांस लेकर छोड़ता है। उसे स्त्री अच्छी लगती है, और शरीरसे उसका सेवन करता है?
पत्ता-वहाँ कोड़ा करते-करते कमलनेत्र उसका लम्बा समय निकल गया। समय के द्वारा कोन कवलित नहीं होता ? ॥५॥
मनुष्य रूपी सूर्यको प्रभावाले अनेक जोबोंसे युक्त दूसरे धातकीखण्ड द्वोपमें जिसमें मयूर और भयंकर सांपोंका युद्ध होता है, ऐसे श्रेष्ठ इवाकार पर्वतको पूर्व दिशामें सूर्य और चन्द्रमाकी किरणोंसे आलोकित भारतवर्षके आनन्द करते हुए प्रचुर गांवोंसे गम्भीर पृथ्वी श्रेष्ठ अलका क्षेत्रमें सम्पसियों और प्रजाओंसे प्रिय मनुष्यों के द्वारा अग्राह्य अयोध्या नगरीमें अत्यन्त भ्रष्ट
७. AP सुरसिहरिहे। ८. A जुम्मोवहि । ९, A सुर गिहि । १०. A सिरिहरु। ११. A एसज्ज पुज्ज । १२. A कायवि सुवह । १३. " सहूं अच्छर । १४. A पडिज । १५.A काले को विण
कवलित; Pकालें को गउ कलिउ । ६. १. A अवर वि पर रवि पवहति अहि; P अमर वि गरवर विहरति जहिं । २.A दीवइ कोह। ३. A सुइकार । ४. AP पगामगाम । ५. A PिE गिजसहि but fणदुगेजसहि in margin ] ६. AP अजयंजन।