SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ महापुरान [४५. ६.७. तहु मंदिर णंदिरि णिम्मलिणि सुंदरि इंदिदिरि णं णलिणि । मुक्कमलकमलदलणयणजय सुहेजलरहल्लि णववेल्लिमुय । 'नियसिरमणि गुणमणिणियहखणि सरसेणाजियसेणा रमणि । सुपसुत्त पुत्तसं णिहियमइ सा सिविणयं' सुविणिय णियह सइ । पत्ता-सीहु इस्थि ससि दिणयह पुण्णकलसु पंकयसरु ॥ सिरि वसहिंदु पमत्तल संखु दाहिणावत्तस ||६|| दिवउ सिट्टउ सुहिमाणियइ णियकतहु कतहु राणियद । फलु विलसि भासिई तेण तहि । दिसवलेए विमलइ थियइ पहि। तहि गभि अग्भि णं चंदमउ घिउ सिरिहरु सिरिहरू सचम । अण्णउ धण्ण पुण्ण णिहि तरु धरणिहि अरणिहि णाई सिहि । जंजाणिउं भाणि जेण जहिं वड्दत संतें तेण तहिं। णय रिद्धिइ बुद्धिइ लक्खियर णिहिलत्थु वि सत्थु वि सिक्खियलं । मायइ पियवायइ गुणसहिउँ णियणामु सधामु तासु णिहिउं । सवियक्षउ थका तरुणिरत्र णवजोज्वणि णं' वणि महुसभउ । करमति अजितंजय नामका दुर्जेय ( मनुजमति ) राजा था। आनन्द देनेवाले उसके घरमें निर्मल सुन्दरी गृहिणी थी मानो कमलिनो में लक्ष्मी हो। वह निर्मल कमलके समान आँखों वाली सौन्दर्य के जलकी लहर नवलताके समान बाहुबली, स्त्रियों में शिरोमणि, गुणरूपी मणिसमूहकी खदान, मोर कामदेवकी सेना अजितसेना नामकी स्त्रो यो। पुत्र में अत्यन्त बुद्धि रखनेवाली, अत्यन्त प्रगाढ़ रूपसे सोयो हुई, सुविनीता वह सती स्वप्न देखती है। घत्ता-सिंह, हाथी, चन्द्रमा, दिनकर, पूर्णकलश, कमल, सरोवर, लक्ष्मी, प्रमत्त वृषभेन्द्र और दक्षिणावर्त शंख ॥६!! सुषियोंके द्वारा मान्य रानीने जो देखा, वह अपने प्रिय पतिसे कहा। उसने उससे उसका विलसित फल कहा । दिशा मण्डल और आकाशके निर्मल होनेपर उसके गर्भ में, बादलोंमें चन्द्रमा के समान, लक्ष्मीधारक श्रीधर स्थित हो गया। पुण्य निधि और धन्य वह इस प्रकार उससे उत्पन्न हुआ जैसे धरती पर वृक्ष और लकड़ोसे आग उत्पन्न हुई हो। वृद्धिको प्राप्त होते हुए उसने जहां जो जाना वह कहा। न्य-ऋद्धि और बुद्धिसे वह उपलक्षित हो गया, निखिलार्थ शास्त्र भी उसने सीख लिये। प्रिय बोलनेवाली मां ने गुण सहित अपना नाम और घर उसे सौंप दिया { अजितसेन उसका नाम था ) नवयौवन में वह विचारग्रस्त और तरुणीरत हो गया मानो वनमें ७. A पंधिरि मंदिरि । ८. A सुक्क. १९. A सुयबलहरणि णिवस्लिभुय; P सुहजलबहल्लि । १०. K तृयसिर । ११. A सविणय सिविणय; P सुषिणम सिविणय । १२. AP संखुवि दाहिणवत्तः । ७. १ मुहमाणियह। २. A दिसिवलयइ विमल थिम्मि पहि; P दिसबला विलि षियम्मि यहि । ३. AF omi: यित। ४. A उप्पण्ण बण्ण उ सञ्चाणिहि; Pउप्पण्णह षण्ण पुण्णणिहि। ५. A तक्षणियउ। ६. Al' वणि गं।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy