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________________ ११५ -४५. ४.७] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पेच्छिवि कसणाणणु थणजुयलु पेच्छिवि मुहमंडलु दरयलु । सालसुसंगठ गयगइपसरु । पेच्छिवि पिय संभासिवि सुसरु । गरवइ"णियमंदिरि गपि थिव णवमासहि जणियन प्राणप्रिउ । सु. दुलहु वल्लहु सजणहं कुलमंडणु खंडणु तुझणह। णविजय गिजइ मरसरु 'फँडु बज्जा दिज्जइ धणियरु ! काणीणहुँ दीपहुं दुत्थियहं णिविणहु किविणह पंथियहं"। घत्ता-तूरैरखे दिस हम्मइ कण्णि वि पडिपण सुम्मइ । णारीकर्षणपेलिय वसुमइ णावह हल्लिय ॥३॥ ४ पिण्णाणे सपणाणे घडियउ हियजणमणि पवजोव्याणि चडिया। ससिवयणहं सयणहं आवद्धिव 'सो इंदु व चंदु व णहि वडिल। जणणीजणेणई जोयंति मुहं अच्छति तेण सहुँ जाव सुहुँ । ता इट्टाउ दिदुर गउ रहिर सुइसीले वणवाले कहि। अरहंतहु संतहु आगमणु कयतासह पावह णिग्गमणु । मयभावु गावु खणि परियलिउ लहुँ णरवइ सुरवइ जिह् पलिक। समसरणु समवसरणंतु गड पहु विविध जियमयरधउ । स्तनयुगलको श्याममुख देखकर और मुखमण्डलको कुछ सफेद देखकर, अलसाये अंगों और गजगतिका प्रसार देखकर, प्रियासे सुन्दर स्वरमें बात कर राजा अपने प्रासादमें जाकर स्थित हो गया। नौ माहमें प्रणयिनीने प्राणप्रिय पुत्रको जन्म दिया। वह दुर्लभ पुत्र सज्जनोंका वल्लभ (प्रिय) था, कुलमण्डन और दुर्जनोंका सपउन करनेवाला था 1 मधुर स्वरमें गाया-नाया जाने लगा। घण्टा बजने लगा, धनसमूह दिया जाने लगा-कानीनों, दोनों, दुःखितों, धनरहितों, कृपणों और पथिकोंको। घत्ता-तूयोंके शब्दोंसे दिशाएं आहत हो उठीं। कानमें पड़ा हुआ भी शब्द सुनाई नहीं देता । नारियोंके नत्यसे प्रेरित जैसे धरती हिल उठी ।।३।। विज्ञान और सम्यक्ज्ञानसे रचित, जनमनका हरण करनेवाला वह नवयौवन में आरूढ़ हो गया। चन्द्रमाके समान मुखवाले अपने लोगोंमें आकर वह ऐसा लगता था जैसे इन्द्र या चन्द्रमा आकाशमें चढ़ गया हो। माता-पिता जबतक सुखसे उसका मुख देखते हुए रहते हैं तबतक वनपालने जो इष्ट दर्शन किया था, उससे बह रह नहीं सका। उस सुविशील नामक वनपालने वह कह दिया-अरहन्त सन्तका आगमन और सन्तापदायक पापका निर्गमन । एक क्षणमें राजाका मदभाव और गर्व चला गया। शीघ्र ही वह राजा इन्द्रकी तरह चला । उपशमके स्थानपर ७. A वरपवलु P छुहषवलु 1 ८ A गदगय पसरु; P गउ गयपसर । ९. A ससुरु । १.. A मंविरु । ११.AK प्राण घिउ । १२. AP सो दुल्लहु । १३. F महरयर । १४, AP पछु । १५. २ पत्थिय । Padds after this: सिरिसम्मणिरूवित णामु ससु, सुहलवखणु जणवा लद्धजसु । १६. A तूररवहं । १७. P वरिउ 1 १८. Kणचणपरिपेल्लिय । ४. १. P सो इदु चंदु णं पडिउ । २. जणणु वि । ३. K विवहबाट ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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