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________________ १०६ महापुराण [ ४.४.१ दीसह पीणपाणि सुरपूर्ण दीसइ सरु मुयंतु उच्छाणउ । दीसइ भंगुरु णहरुकेरल कंठीरंतु करिकुंभविसारष्ठ । दीसह दिगायवरसिंधिय पल दीसइ सुसुमणमाल सपरिमल । दीसइ जोसु जोण्हावास दीसइ उगमंतु णहि पुस । दोसइ पाढीणहं मिहुणुल्लड दीसइ ससलिलु कुडॅजुयलुबउ । दोसइ वियसिउ बंभहराया दीसइ सरिवइ सरयरभीयरु | दीसइ पीडु सीहरूबालउ दीसह घंटारवु तियसालउ । दीसइ गेयमुहलु विसहरघर दीसइ रयणरासि पसरियकरु । दीस जायवेव जालाहरु इय जोइवि जाइवि रायहु घरु । १० पत्ता-जं जिह मणलालिलं णिसिह जिहालिई त तिह दइयह भासियलं ।। । वि सहि खुपस्थिवजे? सिविणयफलु उबऐसियलं ॥४॥ होही सुंदरि तुह सुज तेहउ जासु कित्ति लोयंतु पधावइ बारहपक्ख जांव ससिवासह सोचठाण गहयण सुदिहिहि को विण दोसइ जैगि जे जेहउ । णाणु अलोयंतु वि दरिसावइ । भूरिचंदु णिवडिउ आयासहु । भरवयह मासहु सियछद्विहि । स्थूल सूडवाला ऐरावत हाथो देखा, आवाज करता हुआ बेल, नखोंके समूहवाला, भंगुरगजोंके गण्डस्थलोंको विदीर्ण करनेवाला सिंह देखा, दिग्गजोंसे अभिषिक्त लक्ष्मी दिखाई दी, परिमल सहित सुमनमाला दिखाई दो, ज्योत्स्नाका घर चन्द्रमा दिखाई दिया, माकाशमें उगता हुआ सूर्य दिखाई दिया, मत्स्योंका युगल दिखाई दिया, जलसे भरा हुआ कुम्भयुगल दिखाई दिया, खिला हुआ सरोबर दिखाई दिया, जलचरोंसे भयंकर समुद्र दिखाई दिया, सिंहासनपीठ दिखाई दिया, गतिमुखर नागलोक दिखाई दिया, किरणों के प्रसारसे मुक्त समुद दिखाई दिया, ज्वालाओंको धारण करनेवाली आग दिखाई दी, यह देखकर और राजाके घर जाकर घत्ता-रात्रिमें मनको सुन्दर लगनेवाला जो जैसा देखा था, वह उस प्रकार अपने पतिको बताया। उस ज्येष्ठ राजाने भो सन्तुष्ट होकर स्वप्नफलका कथन किया ॥४|| हे सुन्दरी, तुम्हारा ऐसा पुत्र होगा, जैसा इस संसारमें कोई नहीं है, जिसकी कीर्ति लोकान्त तक जायेगी, जिनका ज्ञान अलोकान्त तक को प्रकट करता है । जब बारह पक्ष ( अर्थात छह माह ) शेष रह गये, तो चन्द्रमाके निवास घर ( आकाश ) से स्वर्णवृष्टि हुई। भाद्रपद शुक्ल ४. १. AP सुरप्यूणउ: र सुरपूणउ and notes at: पूर्णों वा पाठः । २. A सर । ३. P वियदानु ___ मिनिणयकठोरख । ४. A P मृमणसमाल । ५. A उम्गवंतु। ६. A जुयलल्लउं। ७. A कुंभमिद गाल। ८. P सोहहहरालाल । २. Pमणलालउँ । १०. P भासि। ११.A Pउबएसि। ५... A गि जेनतः जगि जे जेहत ।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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