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________________ १०७ -४.६.१०] महाकवि पुष्पदन्त विरचित बढ़तेण विसाहारिक्खें सुमुहुत्तेणुप्पाइयसोलें। गयरूवे विम्हावियसि हिहि हुए गम्भावयारु परमेट्टिहि । घरु आवेप्पिणु खणि सुत्तामें गुरु गुरुयणु अंचिउ जसरामें । गट वाहिट देवावासा पय वंदवि भाव देवेसाह । पत्ता-णरणाहट केरइ हरिसजणेरइ णव मासई तूसवियजणु ।। जंबुण्णयधारहि दुहमलहारहि धरि बुट्टउ वइसवणु घणु ।।५।। जयडिबिमि दंडेण समाह णिन्वुइ पउमापहि परमाहा। सायरसमई पमाणे लइयह गवसहासकोडिहिं गय जइयह । कालपमाणे सखाइ आय उ सायहतहिं वासाहह जायज । पसवणु देवहु जाई सुहासिह बारसिवासरि जेट्ठाभूसिंह। सामर सच्छरु सघउ सवारणु पुणु संप्राइउ सो इरिवाहणु। अम्महि अपर हिंमु संजोइवि पिउ हरिणा जगगुरु उच्चाइवि । सिंचिस सुरगिरिसिरि सुररायहिं मुह षियलियसिवणिवसंघायहिं । सुहतणुपासु सुपासु पकोकिउ सयमहु थोतु करंतष्ठ संकिष्ट । पुजिवि दिवि णिस सणिकेय पहु करपंकाइ णिहियउ तायहु । देउ पियंगुपसवसरिसप्पड दोधणुसयपमाणु माणावहु । षष्टीके दिन विशाखा नक्षत्रके बढ़नेपर सुख उत्पन्न करनेवाले शुभमुहूर्त में जिन्होंने सृष्टिको विस्मय. में डाल दिया है, ऐसे परमेष्ठीका गजरूप में अवतार हुआ। यशसे सुन्दर इन्द्रने एक क्षणमें आकर श्रेष्ठजन गुरुकी पूजा की। भावपूर्वक देवेशके पैरोंको वन्दना कर देवेन्द्र अपने देवगृह चला गया। बत्ता-हर्ष उत्पन्न करनेवाले राजाके घरमें नौ माहतक जिसने जनोंको सन्तुष्ट किया है ऐसा कुबेररूपी मेष, दुखमलको हरण करनेवाली स्वर्णधाराओंसे बरसा ॥५॥ १ . विजयरूपी दुन्दुभिके एण्डेसे आहत होनेपर, रककमलके समान आभावाले पानायके निर्वाण प्राप्त करनेपर जब नौ हजार करोड़ सागर प्रमाण समय बीत गया तथा कालप्रमाणमें एक शंख हुमा तब विशाखा नक्षत्रका उदय हुआ। जेठ शुक्ल द्वादशीके दिन अग्निमित्र नामक शुभयोगमें देवका जन्म होनेपर देवेन्द्र अपने देवों, अप्सराओं, ध्वजों और गजोंके साथ फिर यहां पहेश। माताको दूसरा मायावी बालक देकर, इन्द्रके द्वारा विश्वगुरुको ऊँचा कर, ले जाया गया । शब्दों ( स्तुति वचनों } के साथ, जो जलघट छोड़ रहे हैं ऐसे देवेन्द्रोंने सुमेरुपर्वसपर उनका अभिषेक किया। दोनों पार्श्वभाग सुन्दर होनेसे उन्हें सुपावं कहा गया। स्तुति करते हुए बन्द्र शंकामें पड़ गया । पूषा और बन्दनाके बाद, उन्हें ( सुपाव को ) अपने घर ले जाया गया, और उन्हें पिताके हाथ में रख दिया गया । सुपाश्वदेव प्रियंगु पुष्पके समान आमावाले थे, मानका नाशक उनका शरीर दो सौ धनुष प्रमाण था। २.A P विभाषियं । ३. A दिवि; P वंदिय । ४. ? वासवणषणु । १. १. P इंटेण । २. A चंदसुहासिंह । ३. A जेठपभूसिर । ४. सवाहणु। ५. A P संपाइउ । ६. P मणिकेबह।
SR No.090275
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages522
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size15 MB
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