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४४. ३.१४ ]
महाकवि पुष्पवन्त विरचित
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आउ वि सत्तावीसस मुद्दई ।
ias अणु मिणविणासहि । णीससइ जि तेत्तियहिं जि पक्खहिं । कालें तियणि किं पिण संठित । अक्खड़ सुरवर घणयहु तयहुं । भारहव रिसइ कासीसइ । गाणारसिपुरि सुरैपुर संणिहि । सुपणानें महिरायउ । पुहइसेण णामेण भडारी । देवदेड जिणु पावखयंकरु | पट्टणु भणु भोयसुहु चंग | चित्तु are वित्थारित |
दुरयणितणु लोयण अहिं तेत्तिएँहि सो वरिस सहा सहि afras भिक्खुनरेहिं जियहिं कार्ले से हुआ rिणिद्विव उद्धमासाउसु थक्कड जङ्गय हुं जंबूदी बहुदसिइ सरयसलिलहरस सहरसियगिहि परमारि रिसइण्णव जाय तासु अस्थि पूयै प्राणपियारी ताई विहिं म होस तिर्थकरु ताई विहि मि करि तुर्ज जोगाउ वा जक्ख तं सेम समारिय
घत्ता - तुंगियहि विराम मणि सुत्ति
पच्छिमजामा बालमराललीलगइइ || ढंकियणेत्तर दीसह सिविणावलि सइइ ||३||
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वो हाथ ऊंचा शरीर, नींदरहित नेत्र, सत्ताईस सागर आयु, इतने ही हजार वर्ष में अपने मम अनुसार वह भोजन करता है। इन्द्रियोंको जोतनेवाले मुनिवरोंने कहा है कि वह सत्ताईस हजार वर्षों में सांस लेता है । समयके साथ उसकी भी आयु समाप्त हो गयी। समय के साथ त्रिभुवन में कुछ भी स्थित नहीं रहता । जब उसकी आयु छह माह शेष रह गयी, तब इन्द्रने कुबेरसे कहा, "अनेक द्वीपोंके निवासस्थान जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में काशी देश है, उसमें शरद मेघ और चन्द्रमाको शोभाके समान घरोंवाली वाराणसी नगरी इन्द्रपुरीके समान है । उसमें परम ऋषि ऋषभनाथकी कुलपरम्परा में उत्पन्न सुप्रतिष्ठ नामका राजा था। पृथ्वीसेना उसकी प्राणप्यारी पत्नी थी। उन दोनोंके तीर्थंकरका जन्म होगा, देवोंके देव और पापों का नाश करनेवाले । उनके लिए जैसा योग्य समझो वैसा सुन्दर नगर, भवन और भोगसुख पैदा करो।” कुबेरने उसी प्रकार रचना कर दी, रनोंसे विचित्र नगरकी रचना कर दी।
पता - रातका अन्त होनेपर - अन्तिम प्रहर होनेपर बालहंसिनी के समान लोलागतिवाली उस सतीने मणिमय मंचपर आँखों बन्द कर सोते हुए स्वप्नावली देखो ||३||
३. १. A. P अणि । २. P तो यह जिसु । ३. छम्मासाउ । ४ AP दीवणिषेस ५.A सुरपुरं । ६. सिहं गयजायत । ७. A P पिय पाण । ८. A भोभव सुहं । kr